बुधवार, 19 मई 2010

प्रज्ञा सुभाषित-5

प्रज्ञा सुभाषित-5
1) यह संसार कर्म की कसौटी है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है।
2) दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है।
3) जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है।
4) जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।
5) वह मनुष्य विवेकवान्‌ है, जो भविष्य से न तो आशा रखता है और न भयभीत ही होता है।
6) बुद्धिमान्‌ बनने का तरीका यह है कि आज हम जितना जानते हैं भविष्य में उससे अधिक जानने के लिए प्रयत्नशील रहें।
7) जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।
8) तुम्हारा प्रत्येक छल सत्य के उस स्वच्छ प्रकाश में एक बाधा है जिसे तुम्हारे द्वारा उसी प्रकार प्रकाशित होना चाहिए जैसे साफ शीशे के द्वारा सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होता है।
9) मनुष्य जीवन का पूरा विकास गलत स्थानों, गलत विचारों और गलत दृष्टिकोणों से मन और शरीर को बचाकर उचित मार्ग पर आरूढ़ कराने से होता है।
10) जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।
11) सेवा का मार्ग ज्ञान, तप, योग आदि के मार्ग से भी ऊँचा है।
12) अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
13) मस्तिष्क में जिस प्रकार के विचार भरे रहते हैं वस्तुत: उसका संग्रह ही सच्ची परिस्थिति है। उसी के प्रभाव से जीवन की दिशाएँ बनती और मुड़ती रहती हैं।
14) संघर्ष ही जीवन है। संघर्ष से बचे रह सकना किसी के लिए भी संभव नहीं।
15) अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
16) सत्य, प्रेम और न्याय को आचरण में प्रमुख स्थान देने वाला नर ही नारायण को अति प्रिय है।
17) ज्ञान और आचरण में बोध और विवेक में जो सामञ्जस्य पैदा कर सके उसे ही विद्या कहते हैं।
18) संसार में हर वस्तु में अच्छे और बुरे दो पहलू हैं, जो अच्छा पहलू देखते हैं वे अच्छाई और जिन्हें केवल बुरा पहलू देखना आता है वह बुराई संग्रह करते हैं।
19) सलाह सबकी सुनो पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
20) फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण न कर सको।
21) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता।
22) वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
23) स्वार्थ, अहंकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
24) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
25) पाप अपने साथ रोग, शोक, पतन और संकट भी लेकर आता है।
26) ईमानदार होने का अर्थ है-हजार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
27) वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
28) सद्‌गुणों के विकास में किया हुआ कोई भी त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता।
29) जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है।
30) वयúं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:। हम पुरोहितगण अपने राष्ट्र में जाग्रत (जीवन्त) रहें।
31) सत्कर्म की प्रेरणा देने से बढ़कर और कोई पुण्य हो ही नहीं सकता।
32) नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की और निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है।
33) सद्‌भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है।
34) असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
35) सच्चाई, ईमानदारी, सज्जनता और सौजन्य जैसे गुणों के बिना कोई मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
36) किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।
37) उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
38) गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।
39) भगवान्‌ को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है।
40) अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।
41) अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
42) जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है।
43) समाज का मार्गदर्शन करना एक गुरुतर दायित्व है, जिसका निर्वाह कर कोई नहीं कर सकता।
44) नेतृत्व पहले विशुद्ध रूप से सेवा का मार्ग था। एक कष्ट साध्य कार्य जिसे थोड़े से सक्षम व्यक्ति ही कर पाते थे।
45) सारी शक्तियाँ लोभ, मोह और अहंता के लिए वासना, तृष्णा और प्रदर्शन के लिए नहीं खपनी चाहिए।
46) निश्चित रूप से ध्वंस सरल होता है और निर्माण कठिन है।
47) अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।
48) उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
49) शक्ति उनमें होती है, जिनकी कथनी और करनी एक हो, जो प्रतिपादन करें, उनके पीछे मन, वचन और कर्म का त्रिविध समावेश हो।
50) व्यक्ति का चिंतन और चरित्र इतना ढीला हो गया है कि स्वार्थ के लिए अनर्थ करने में व्यक्ति चूकता नहीं।
51) संसार का सबसे बड़ानेता है-सूर्य। वह आजीवन व्रतशील तपस्वी की तरह निरंतर नियमित रूप से अपने सेवा कार्य में संलग्न रहता है।
52) नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले खरीदा जाता है।
53) किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।
54) महात्मा वह है, जिसके सामान्य शरीर में असामान्य आत्मा निवास करती है।
55) जिसका हृदय पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता।
56) स्वर्ग और मुक्ति का द्वार मनुष्य का हृदय ही है।
57) यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं।
58) अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
59) समय को नियमितता के बंधनों में बाँधा जाना चाहिए।
60) अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।
61) चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं।
62) कुकर्मी से बढ़कर अभागा कोई नहीं, क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं रहता।
63) जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।
64) अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
65) जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ।
66) जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।
67) बुराई मनुष्य के बुरे कर्मों की नहीं, वरन्‌ बुरे विचारों की देन होती है।
68) सब कुछ होने पर भी यदि मनुष्य के पास स्वास्थ्य नहीं, तो समझो उसके पास कुछ है ही नहीं।
69) अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
70) सत्य एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो देश, काल, पात्र अथवा परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती।
71) सत्य ही वह सार्वकालिक और सार्वदेशिक तथ्य है, जो सूर्य के समान हर स्थान पर समान रूप से चमकता रहता है।
72) जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है।
73) कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती।
74) उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
75) ज्ञान अक्षय है। उसकी प्राप्ति मनुष्य शय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से न जाने देना चाहिए।
76) अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
77) आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।
78) मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान्‌ है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कत्र्तव्य है।
79) ज्ञान ही धन और ज्ञान ही जीवन है। उसके लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहींं जाता।
80) असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
81) गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
82) असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
83) शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है।
84) मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकत्र्ता और स्वामी है।
85) जिन्हें लम्बी जिन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
86) कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।
87) आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
88) दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं।
89) अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
90) आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
91) समान भाव से आत्मीयता पूर्वक कत्र्तव्य-कर्मों का पालन किया जाना मनुष्य का धर्म है।
92) पाप की एक शाखा है-असावधानी।
93) जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।
94) मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-विज्ञान की जानकारी हुए बिना यह संभव नहीं है कि मनुष्य दुष्कर्मों का परित्याग करे।
95) ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
96) मनुष्य बुद्धिमानी का गर्व करता है, पर किस काम की वह बुद्धिमानी-जिससे जीवन की साधारण कला हँस-खेल कर जीने की प्रक्रिया भी हाथ न आए।
97) जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।
98) मनुष्य के भावों में प्रबल रचना शक्ति है, वे अपनी दुनिया आप बसा लेते हैं।
99) पग-पग पर शिक्षक मौजूद हैं, पर आज सीखना कौन चाहता है?
100) इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
101) पादरी, मौलवी और महंत भी जब तक एक तरह की बात नहीं कहते, तो दो व्यक्तियों में एकमत की आशा की ही कैसे जाए?
102) जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।
103) विवेकशील व्यक्ति उचित अनुचित पर विचार करता है और अनुचित को किसी भी मूल्य पर स्वीकार नहीं करता।
104) धर्मवान्‌ बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है।
105) मानव जीवन की सफलता का श्रेय जिस महानता पर निर्भर है, उसे एक शब्द में धार्मिकता कह सकते हैं।
106) मांसाहार मानवता को त्यागकर ही किया जा सकता है।
107) परमार्थ मानव जीवन का सच्चा स्वार्थ है।
108) समय उस मनुष्य का विनाश कर देता है, जो उसे नष्ट करता रहता है।
109) अश£ील, अभद्र अथवा भोगप्रदधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
110) परोपकार से बढ़कर और निरापत दूसरा कोई ध्धर्म नहीं।
111) परावलम्बी जीवित तो रहते हैं, पर मृत तुल्य ही।
112) अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।
113) एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
114) सबसे बड़ा दीन दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रण नहीं।
115) जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
116) भगवान्‌ की दण्ड संहिता में असामाजिक प्रवृत्ति भी अपराध है।
117) करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है।
118) डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है।
119) मानवता की सेवा से बढ़कर और कोई बड़ा काम नहीं हो सकता।
120) प्रकृतित: हर मनुष्य अपने आप में सुयोग्य एवं समर्थ है।
121) व्यक्तित्व की अपनी वाणी है, जो जीभ या कलम का इस्तेमाल किये बिना भी लोगों के अंतराल को छूती है।
122) प्रस्तुत उलझनें और दुष्प्रवृत्तियाँ कहीं आसमान से नहीं टपकीं। वे मनुष्य की अपनी बोयी, उगाई और बढ़ाई हुई हैं।
123) दीनता वस्तुत: मानसिक हीनता का ही प्रतिफल है।
124) जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है।
125) सत्कर्मों का आत्मसात होना ही उपासना, साधना और आराधना का सारभूत तत्व है।
126) जनसंख्या की अभिवृद्धि हजार समस्याओं की जन्मदात्री है।
127) अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
128) सद्‌विचार तब तक मधुर कल्पना भर बने रहते हैं, जब तक उन्हें कार्य रूप में परिणत नहीं किया जाय।
129) नेतृत्व का अर्थ है वह वर्चस्व जिसके सहारे परिचितों और अपरिचितों को अंकुश में रखा जा सके, अनुशासन में चलाया जा सके।
130) आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
131) नेता शिक्षित और सुयोग्य ही नहीं, प्रखर संकल्प वाला भी होना चाहिए, जो अपनी कथनी और करनी को एकरूप में रख सके।
132) सफल नेता की शिवत्व भावना-सबका भला 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' से प्रेरित होती है।
133) जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते।
134) विपरीत प्रतिकूलताएँ नेता के आत्म विश्वास को चमका देती हैं।
135) सच्चे नेता आध्यात्मिक सिद्धियों द्वारा आत्म विश्वास फैलाते हैं। वही फैलकर अपना प्रभाव मुहल्ला, ग्राम, शहर, प्रांत और देश भर में व्याप्त हो जाता है।
136) सफल नेतृत्व के लिए मिलनसारी, सहानुभूति और कृतज्ञता जैसे दिव्य गुणों की अतीव आवश्यकता है।
137) हर व्यक्ति जाने या अनजाने में अपनी परिस्थितियों का निर्माण आप करता है।
138) अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
139) काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।
140) निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है।
141) दिल खोलकर हँसना और मुस्कराते रहना चित्त को प्रफुल्लित रखने की एक अचूक औषधि है।
142) नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं।
143) श्रेष्ठ मार्ग पर कदम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है।
144) मरते वे हैं, जो शरीर के सुख और इन्दि्रय वासनाओं की तृप्ति के लिए रात-दिन खपते रहते हैं।
145) राष्ट्र के उत्थान हेतु मनीषी आगे आयें।
146) राष्ट्र निर्माण जागरूक बुद्धिजीवियों से ही संभव है।
147) राष्ट्रोत्कर्ष हेतु संत समाज का योगदान अपेक्षित है।
148) राष्ट्र का विकास, बिना आत्म बलिदान के नहीं हो सकता।
149) राष्ट्र को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए आदर्शवाद, नैतिकता, मानवता, परमार्थ, देश भक्ति एवं समाज निष्ठा की भावना की जागृति नितान्त आवश्यक है।
150) सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में जो विकृतियाँ, विपन्नताएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं, वे कहीं आकाश से नहीं टपकी हैं, वरन्‌ हमारे अग्रणी, बुद्धिजीवी एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों की भावनात्मक विकृतियों ने उन्हें उत्पन्न किया है।
151) राष्ट्रीय स्तर की व्यापक समस्याएँ नैतिक दृष्टि धूमिल होने और निकृष्टता की मात्रा बढ़ जाने के कारण ही उत्पन्न होती है।
152) राष्ट्र के नव निर्माण में अनेकों घटकों का योगदान होता है। प्रगति एवं उत्कर्ष के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास चलते और उसके अनुरूप सफलता-असफलताएँ भी मिलती हैं।
153) राष्ट्रों, राज्यों और जातियों के जीवन में आदिकाल से उल्लेखनीय धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक क्रान्तियाँ हुई हैं। उन परिस्थितियों में श्रेय भले ही एक व्यक्ति या वर्ग को मार्गदर्शन को मिला हो, सच्ची बात यह रही है कि बुद्धिजीवियों, विचारवान्‌ व्यक्तियों ने उन क्रान्तियों को पैदा किया, जन-जन तक फैलाया और सफल बनाया।
154) धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
155) अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।
156) ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए।
157) जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं।
158) किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।
159) बड़प्पन सुविधा संवर्धन का नहीं, सद्‌गुण संवर्धन का नाम है।
160) संसार का सबसे बड़ा दीवालिया वह है, जिसने उत्साह खो दिया।
161) मनुष्य की संकल्प शक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है।
162) अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।
163) आत्मविश्वासी कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।
164) उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
165) जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।
166) ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है-अध्यात्म।
167) स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।
168) प्रतिभावान्‌ व्यक्तित्व अर्जित कर लेना, धनाध्यक्ष बनने की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ और श्रेयस्कर है।
169) दरिद्रता कोई दैवी प्रकोप नहीं, उसे आलस्य, प्रमाद, अपव्यय एवं दुर्गुणों के एकत्रीकरण का प्रतिफल ही करना चाहिए।
170) शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती।
171) अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
172) जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं।
173) हम आमोद-प्रमोद मनाते चलें और आस-पास का समाज आँसुओं से भीगता रहे, ऐसी हमारी हँसी-खुशी को धिक्कार है।
174) दूसरों की सबसे बड़ी सहायता यही की जा सकती है कि उनके सोचने में जो त्रुटि है, उसे सुधार दिया जाए।
175) ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।
176) प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से जागती है और उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है।
177) संकल्प जीवन की उत्कृष्टता का मंत्र है, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिए होना चाहिए।
178) पुण्य की जय-पाप की भी जय ऐसा समदर्शन तो व्यक्ति को दार्शनिक भूल-भुलैयों में उलझा कर संसार का सर्वनाश ही कर देगा।
179) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
180) अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्कि्रयता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
181) किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
182) दुष्कर्म स्वत: ही एक अभिशाप है, जो कत्र्ता को भस्म किये बिना नहीं रहता।
183) कत्र्तव्य पालन करते हुए मौत मिलना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता है।
184) बड़प्पन बड़े आदमियों के संपर्क से नहीं, अपने गुण, कर्म और स्वभाव की निर्मलता से मिला करता है।
185) पुण्य-परमार्थ का कोई भी अवसर टालना नहीं चाहिए। अगले क्षण यह देह रहे या न रह ेक्या ठिकाना?
186) शुभ कर्यों को कल के लिए मत टालिए, क्योंकि कल कभी आता नहीं।

प्रज्ञा सुभाषित-4

301) शूरता है सभी परिस्थितियों में परम सत्य के लिए डटे रह सकना, विरोध में भी उसकी घोषण करना और जब कभी आवश्यकता हो तो उसके लिए युद्ध करना।
302) सुख बाँटने की वस्तु है और दु:खे बँटा लेने की। इसी आधार पर आंतरिक उल्लास और अन्यान्यों का सद्‌भाव प्राप्त होता है। महानता इसी आधार पर उपलब्ध होती है।
303) हम स्वयं ऐसे बनें, जैसा दूसरों को बनाना चाहते हैं। हमारे क्रियाकलाप अंदर और बाहर से उसी स्तर के बनें जैसा हम दूसरों द्वारा क्रियान्वित किये जाने की अपेक्षा करते हैं।
304) ज्ञानयोगी की तरह सोचें, कर्मयोगी की तरह पुरुषार्थ करें और भक्तियोगी की तरह सहृदयता उभारें।
305) परमात्मा जिसे जीवन में कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है।
306) अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है।
307) वासना और तृष्णा की कीचड़ से जिन्होंने अपना उद्धार कर लिया और आदर्शों के लिए जीवित रहने का जिन्होंने व्रत धारण कर लिया वही जीवन मुक्त है।
308) परिवार एक छोटा समाज एवं छोटा राष्ट्र है। उसकी सुव्यवस्था एवं शालीनता उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी बड़े रूप में समूचे राष्ट्र की।
309) व्यक्तिवाद के प्रति उपेक्षा और समूहवाद के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों का समाज ही समुन्नत होता है।
310) जिस प्रकार हिमालय का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुL षार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है।
311) ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
312) सत्य का मतलब सच बोलना भर नहीं, वरन्‌ विवेक, कत्र्तव्य, सदाचरण, परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्‌भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीना है।
313) भगवान्‌ भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है और सर्वोत्तम सद्‌भावना का एकमात्र प्रमाण जनकल्याण के कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान करना है।
314) भगवान्‌ का अवतार तो होता है, परन्तु वह निराकार होता है। उनकी वास्तविक शक्ति जाग्रत्‌ आत्मा होती है, जो भगवान्‌ का संदेश प्राप्त करके अपना रोल अदा करती है।
315) प्रगतिशील जीवन केवल वे ही जी सकते हैं, जिनने हृदय में कोमलता, मस्तिष्क में तीष्णता, रक्त में उष्णता और स्वभाव में दृढ़ता का समुतिच समावेश कर लिया है।
316) दया का दान लड़खड़ाते पैरा में नई शक्ति देना, निराश हृदय में जागृति की नई प्रेरणा फूँकना, गिरे हुए को उठाने की सामथ्र्य प्रदान करना एवं अंधकार में भटके हुए को प्रकाश देना।
317) साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखित उठाये बिना जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती।
318) अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है।
319) जो मन का गुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की गुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन।
320) अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता।
321) आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन्‌ अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है।
322) माँ का जीवन बलिदान का, त्याग का जीवन है। उसका बदला कोई भी पुत्र नहीं चुका सकता चाहे वह भूमंडल का स्वामी ही क्यों न हो।
323) स्वस्थ क्रोध उस राख से ढँकी चिंगारी की तरह है, जो अपनी ज्वाला से किसी को दग्ध तो नहीं करती, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर बfiत कुछ को जलाने की सामथ्र्य रखती है।
324) धन्य है वे जिन्होंने करने के लिए अपना काम प्राप्त कर लिया है और वे उसमें लीन है। अब उन्हें किसी और वरदान की याचना नहीं करना चाहिए।
325) परमार्थ के बदले यदि हमको कुछ मूल्य मिले, चाहे वह पैसे के रूप में प्रभाव, प्रभुत्व व पद-प्रतिष्ठा के रूप में तो वह सच्चा परमार्थ नहीं है। इसे कत्र्तव्य पालन कह सकते हैं।
326) समय की कद्र करो। प्रत्येक दिवस एक जीवन है। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओ। जिन्दगी की सच्ची कीमत हमारे वक्त का एक-एक क्षण ठीक उपयोग करने में है।
327) साहस ही एकमात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ते एवं लक्ष्य तक जा पहुँचने में समर्थ हो सकता है।
328) तुम सेवा करने के लिए आये हो, हुकूमत करने के लिए नहीं। जान लो कष्ट सहने और परिश्रम करने के लिए तुम बुलाये गये हो, आलसी और वार्तालाप में समय नष्ट करने के लिए नहीं।
329) जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं।
330) दूसरों पर भरोसा लादे मत बैठे रहो। अपनी ही हिम्मत पर खड़ा रह सकना और आगे बढ़् सकना संभव हो सकता है। सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
331) जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है।
332) समर्पण का अर्थ है- मन अपना विचार इष्ट के, हृदय अपना भावनाएँ इष्ट की और आपा अपना किन्तु कत्र्तव्य समग्र रूप से इष्ट का।
333) आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है।
334) विपत्ति से असली हानि उसकी उपस्थिति से नहीं होती, जब मन:स्थिति उससे लोहा लेने में असमर्थता प्रकट करती है तभी व्यक्ति टूटता है और हानि सहता है।
335) श्रद्धा की प्रेरणा है-श्रेष्ठता के प्रति घनिष्ठता, तन्मयता एवं समर्पण की प्रवृतित। परमेश्वर के प्रति इसी भाव संवेदना को विकसित करने का नमा है-भक्ति।
336) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
337) जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं।
338) ज्ञान का जितना भाग व्यवहार में लाया जा सके वही सार्थक है, अन्यथा वह गधे पर लदे बोझ के समान है।
339) नाव स्वयं ही नदी पार नहीं करती। पीठ पर अनेकों को भी लाद कर उतारती है। सन्त अपनी सेवा भावना का उपयोग इसी प्रकार किया करते है।
340) कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है-प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का।
341) हमारी कितने रातें सिसकते बीती हैं-कितनी बार हम फूट-फूट कर रोये हैं इसे कोई कहाँ जानता हैÔ? लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं, कोई लेखक, विद्वान, वक्ता, नेता, समझा हैं। कोई उसे देख सका होता तो उसे मानवीय व्यथा वेदना की अनुभूतियों से करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इस हड्डियों के ढ़ाँचे में बैठी बिलखती दिखाई पड़ती है।
342) परिजन हमारे लिए भगवान की प्रतिकृति हैं और उनसे अधिकाधिक गहरा प्रेम प्रसंग बनाए रखने की उत्कंठा उमड़ती रहती है। इस वेदना के पीछे भी एक ऐसा दिव्य आनंद झाँकता है इसे भक्तियोग के मर्मज्ञ ही जान सकते है।
343) हराम की कमाई खाने वाले,भष्ट्राचारी बेईमान लोगों के विरुद्ध इतनी तीव्र प्रतिक्रिया उठानी होगी जिसके कारण उन्हें सड़क पर चलना और मुँह दिखाना कठिन हो जाये। जिधर से वे निकलें उधर से ही धिक्कार की आवाजें ही उन्हें सुननी पडें। समाज में उनका उठना-बैठना बन्द हो जाये और नाई, धोबी, दर्जी कोई उनके साथ किसी प्रकार का सहयोग करने के लिए तैयार न हों।
344) जटायु रावण से लड़कर विजयी न हो सका और न लड़ते समय जीतने की ही आशा की थी फिर भी अनीति को आँखो से देखते रहने और संकट में न पड़ने के भय से चुप रहने की बात उसके गले न उतरी और कायरता और मृत्यु में से एक को चुनने का प्रसंग सामने रहने पर उसने युद्ध में ही मर मिटने की नीति को ही स्वीकार किया।
345) गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यX, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन्‌ अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते है।
346) अंत:मन्थन उन्हें खासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं।
347) जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी-सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनियाँ में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनियाँ की।
348) लोकसेवी नया प्रजनन बंद कर सकें, जितना हो चुका उसी के निर्वाह की बात सोचें तो उतने भर से उन समस्याओं का आधा समाधान हो सकता है जो पर्वत की तरह भारी और विशालकाय दीखती है।
349) उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें।
350) अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान्‌ इन दो को मजबूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख बनाए रहें।
351)चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्‌भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है।
352)दुष्टता वस्तुत: पह्ले दर्जे की कायरता का ही नाम है। उसमें जो आतंक दिखता है वह प्रतिरोध के अभाव से ही पनपता है। घर के बच्चें भी जाग पड़े तो बलवान चोर के पैर उखड़ते देर नहीं लगती। स्वाध्याय से योग की उपासना करे और योग से स्वाध्याय का अभ्यास करें। स्वाध्याय की सम्पत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है।
353)धर्म को आडम्बरयुक्त मत बनाओ, वरन्‌ उसे अपने जीवन में धुला डालो। धर्मानुकूल ही सोचो और करो। शास्त्र की उक्ति है कि रक्षा किया हुआ धर्म अपनी रक्षा करता है और धर्म को जो मारता है, धर्म उसे मार डालता है, इस तथ्य को
354)ध्यान में रखकर ही अपने जीवन का नीति निर्धारण किया जाना चाहिए।
355)मनुष्य को एक ही प्रकार की उन्नति से संतुष्ट न होकर जीवन की सभी दिशाओं में उन्नति करनी चाहिए। केवल एक ही दिशा में उन्नति के लिए अत्यधिक प्रयत्न करना और अन्य दिशाओं की उपेक्षा करना और उनकी ओर से उदासीन रहना उचित नहीं है।
356)विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा पुरूषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात्‌ ईश्वर विश्वास का प्रथम चिन्ह है।
357)दृढ़ आत्मविश्वास ही सफलता की एकमात्र कुTी है।
358)आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि गलतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें।
359)समस्त हिंसा, द्वेष, बैर और विरोध की भीषण लपटें दया का संस्पर्श पाकर शान्त हो जाती हैं।

प्रज्ञा सुभाषित-3

प्रज्ञा सुभाषित-3
201) अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
202) दो याद रखने योग्य हैं-एक कत्र्तव्य और दूसरा मरण।
203) कर्म ही पूजा है और कत्र्तव्यपालन भक्ति है।
204) र्हमान और भगवान्‌ ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
205) सम्मान पद में नहीं, मनुष्यता में है।
206) महापुरुषों का ग्रंथ सबसे बड़ा सत्संग है।
207) चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है।
208) बहुमूल्य समय का सदुपयोग करने की कला जिसे आ गई उसने सफलता का रहस्य समझ लिया।
209) सबकी मंगल कामना करो, इससे आपका भी मंगल होगा।
210) स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक धर्म कत्र्तव्य है।
211) स्वाध्याय को साधना का एक अनिवार्य अंग मानकर अपने आवश्यक नित्य कर्मों में स्थान दें।
212) अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
213) प्रतिकूल परिस्थितियों करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
214) प्रतिकूल परिस्थिति में भी हम अधीर न हों।
215) जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन।
216) यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है।
217) कत्र्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है।
218) इस संसार में कमजोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
219) काल(समय) सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥
220) अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो।
221) परिश्रम ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है।
222) व्यसनों के वश मेंं होकर अपनी महत्ता को खो बैठे वह मूर्ख है।
223) संसार में रहने का सच्चा तत्त्वज्ञान यही है कि प्रतिदिन एक बार खिलखिलाकर जरूर हँसना चाहिए।
224) विवेक और पुरुषार्थ जिसके साथी हैं, वही प्रकाश प्राप्त करेंगे।
225) अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
226) जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
227) अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
228) किसी को गलत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।
229) जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है।
230) भाग्य भरोसे बैठे रहने वाले आलसी सदा दीन-हीन ही रहेंगे।
231) जिसके पास कुछ भी कर्ज नहीं, वह बड़ा मालदार है।
232) नैतिकता, प्रतिष्ठाओं में सबसे अधिक मूल्यवान्‌ है।
233) जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो।
234) वे प्रत्यक्ष देवता हैं, जो कत्र्तव्य पालन के लिए मर मिटते हैं।
235) जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है।
236) जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है।
237) दूसरों की निन्दा-त्रुटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो।
238) आत्मोन्नति से विमुख होकर मृगतृष्णा में भटकने की मूर्खता न करो।
239) आत्म निर्माण ही युग निर्माण है।
240) जमाना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे।
241) युग निर्माण योजना का आरम्भ दूसरों को उपदेश देने से नहीं, वरन्‌ अपने मन को समझाने से शुरू होगा।
242) भगवान्‌ की सच्ची पूजा सत्कर्मों में ही हो सकती है।
243) सेवा से बढ़कर पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता।
244) स्वयं उत्कृष्ट बनने और दूसरों को उत्कृष्ट बनाने का कार्य आत्म कल्याण का एकमात्र उपाय है।
245) अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है।
246) अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है।
247) सबके सुख में ही हमारा सुख सन्निहित है।
248) उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते है।
249) सत्कर्म ही मनुष्य का कत्र्तव्य है।
250) जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान्‌ कार्य करने के लिए है।
251) राष्ट्र को बुराइयों से बचाये रखने का उत्तरदायित्व पुरोहितों का है।
252) इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
253) सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता स्थिर रहती है।
254) जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ।
255) श्रम और तितिक्षा से शरीर मजबूत बनता है।
256) दूसरे के लिए पाप की बात सोचने में पहले स्वयं को ही पाप का भागी बनना पड़ता है।
257) पराये धन के प्रति लोभ पैदा करना अपनी हानि करना है।
258) ईष्र्या और द्वेष की आग में जलने वाले अपने लिए सबसे बड़े शत्रु हैं।
259) चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है।
260) पेट और मस्तिष्क स्वास्थ्य की गाड़ी को ठीक प्रकार चलाने वाले दो पहिए हैं। इनमेंं से एक बिगड़ गया तो दूसरा भी बेकार ही बना रहेगा।
261) आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है।
262) आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है।
263) ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
264) मन का नियन्त्रण मनुष्य का एक आवश्यक कत्र्तव्य है।
265) किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता।
266) शिक्षा का स्थान स्कूल हो सकते हैं, पर दीक्षा का स्थान तो घर ही है।
267) वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश है
268) आत्म निर्माण का अर्थ है-भाग्य निर्माण।
269) ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही है।
270) बच्चे की प्रथम पाठशाला उसकी माता की गोद में होती है।
271) शिक्षक राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी हैं।
272) शिक्षक नई पीढ़ी के निर्माता होत हैं।
273) समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है।
274) ज्ञान और आचरण में जो सामंजस्य पैदा कर सके, उसे ही विद्या कहते हैं।
275) अब भगवानÔ गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान्‌ का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये।
276) जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है।
277) स्वार्थपरता की कलंक कालिमा से जिन्होंने अपना चेहरा पोत लिया है, वे असुर है।
278) मात्र हवन, धूपबत्ती और जप की संख्या के नाम पर प्रसन्न होकर आदमी की मनोकामना पूरी कर दिया करे, ऐसी देवी दुनिया मेंं कहीं नहीं है।
279) दुनिया में सफलता एक चीज के बदले में मिलती है और वह है आदमी की उत्कृष्ट व्यक्तित्व।
280) जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता।
281) सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए आयु का एक दिन छीन ले जाता है, पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन क्यों मिला ?
282) दरिद्रता पैसे की कमी का नाम नहीं है, वरन्‌ मनुष्य की कृपणता का नाम दरिद्रता है।
283) हे मनुष्य! यश के पीछे मत भाग, कत्र्तव्य के पीछे भाग। लोग क्या कहते हैं यह न सुनकर विवेक के पीछे भाग। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, सत्य का सहारा मत छोड़।
284) कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान्‌ की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है।
285) भगवान्‌ आदर्शों, श्रेष्ठताओं के समूच्चय का नाम है। सिद्धान्तों के प्रति मनुष्य के जो त्याग और बलिदान है, वस्तुत: यही भगवान्‌ की भक्ति है।
286) आस्तिकता का अर्थ है-ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है।
287) पुण्य-परमार्थ का कोई अवसर टालना नहीं चाहिए; क्योंकि अगले क्षण यह देह रहे या न रहे क्या ठिकाना।
288) अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं।
289) जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है।
290) एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
291) आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है।
292) किसी से ईष्र्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है।
293) ईष्र्या की आग में अपनी शक्तियाँ जलाने की अपेक्षा कहीं अच्छा और कल्याणकारी है कि दूसरे के गुणों और सत्प्रयत्नों को देखें जिसके आधार पर उनने अच्छी स्थिति प्राप्त की है।
294) जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है।
295) किसी महान्‌ उद्द्‌ेश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना।
296) सहानुभूति मनुष्य के हृदय में निवास करने वाली वह कोमलता है, जिसका निर्माण संवेदना, दया, प्रेम तथा करुणा के सम्मिश्रण से होता है।
297) असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है।
298) 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है।
299) जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं।
300) जाग्रत्‌ अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।

वाह्य सूत्र

101) स्वार्थ, अंहकार और लापरवाही की मात्रा बढ़ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
102) बुद्धिमान्‌ वह है, जो किसी को गलतियों से हानि होते देखकर अपनी गलतियाँ सुधार लेता है।
103) भूत लौटने वाला नहीं, भविष्य का कोई निश्चय नहीं; सँभालने और बनाने योग्य तो वर्तमान है।
104) लोग क्या कहते हैं-इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ यह देखो कि जो करने योग्य था, वह बनपड़ा या नहीं?
105) जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो।
106) भगवान्‌ के काम में लग जाने वाले कभी घाटे में नहीं रह सकते।
107) दूसरों की निन्दा और त्रूटियाँ सुनने में अपना समय नष्ट मत करो।
108) दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहींं मिला, जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया।
109) सबसे बड़ा दीन-दुर्बल वह है, जिसका अपने ऊपर नियंत्रयण नहीं।
110) यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है।
111) मानवता की सेवा से बढ़कर और कोई काम बडΠा नहीं हो सकता।
112) जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा।
113) शुभ कार्यों के लिए हर दिन शुभ और अशुभ कार्यों के लिए हर दिना अशुभ है।
114) किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
115) अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे।
116) भगवान्‌ जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं।
117) गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है।
118) दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं।
119) आज के काम कल पर मत टालिए।
120) आत्मा की पुकार अनसुनी न करें।
121) मनुष्य परिस्थितियों का गुलाम नहीं, अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है।
122) आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा।
123) समय की कद्र करो। एक मिनट भी फिजूल मत गँवाओं।
124) जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है।
125) कत्र्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है।
126) हँसती-हँसाती जिन्दगी ही सार्थक है।
127) पढ़ने का लाभ तभी है जब उसे व्यवहार में लाया जाए।
128) वत मत करो, जिसके लिए पीछे पछताना पड़े।
129) प्रकृति के अनुकूल चलें, स्वस्थ रहें।
130) स्वच्छता सभ्यता का प्रथम सोपान है।
131) भगवान्‌ भावना की उत्कृष्टता को ही प्यार करता है।
132) सत्प्रयत्न कभी निरर्थक नहीं होते।
133) गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है।
134) नर और नारी एक ही आत्मा के दो रूप है।
135) नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार।
136) बहुमूल्य वर्तमान का सदुपयोग कीजिए।
137) जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो।
138) जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं।
139) सेवा में बड़ी शक्ति है। उससे भगवान्‌ भी वश में हो सकते हैं।
140) स्वाध्याय एक वैसी ही आत्मिक आवश्यकता है जैसे शरीर के लिए भोजन।
141) दूसरों के साथ सदैव नम्रता, मधुरता, सज्जनता, उदारता एवं सहृदयता का व्यवहार करें।
142) अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा जिम्मेदार का ध्यान रखें।
143) धैर्य, अनुद्वेग, साहस, प्रसन्नता, दृढ़ता और समता की संतुलित स्थिति सदेव बनाये रखें।
144) स्वर्ग और नरक कोई स्थान नहीं, वरन्‌ दृष्टिकोण है।
145) आत्मबल ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है।
146) सादगी सबसे बड़ा फैशन है।
147) हर मनुष्य का भाग्य उसकी मुट्ठी में है।
148) सन्मार्ग का राजपथ कभी भी न छोड़े।
149) आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है।
150) महानता के विकास में अहंकार सबसे घातक शत्रु है।
151) 'स्वाध्यान्मा प्रमद:' अर्थात्‌ स्वाध्याय में प्रमाद न करें।
152) श्रेष्ठता रहना देवत्व के समीप रहना है।
153) मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
154) परमात्मा की सच्ची पूजा सद्‌व्यवहार है।
155) आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है।
156) आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है।
157) ज्ञान की आराधना से ही मनुष्य तुच्छ से महान्‌ बनता है।
158) उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
159) आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।
160) सज्जनता और मधुर व्यवहार मनुष्यता की पहली शर्ता है।
161) दूसरों को पीड़ा न देना ही मानव धर्म है।
162) खुद साफ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं।
163) 'स्वर्ग' शब्द में जिन गुणों का बोध होता है, सफाई और शुचिता उनमें सर्वप्रमुख है।
164) धरती पर स्वर्ग अवतरित करने का प्रारम्भ सफाई और स्वच्छता से करें।
165) गलती को ढँÚूढ़ना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है।
166) जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं।
167) प्रशंसा और प्रतिष्ठा वही सच्ची है, जो उत्कृष्ट कार्य करने के लिए प्राप्त हो।
168) दृष्टिकोण की श्रेष्ठता ही वस्तुत: मानव जीवन की श्रेष्ठता है।
169) जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है।
170) उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
171) खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूृबती है।
172) आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं।
173) ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
174) ईश्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।
175) स्वाधीन मन मनुष्य का सच्चा सहायक होता है।
176) अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है।
177) विचारों की पवित्रता स्वयं एक स्वास्थ्यवर्धक रसायन है।
178) सुखी होना है तो प्रसन्न रहिए, निश्चिन्त रहिए, मस्त रहिए।
179) ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वह आचरण में आए।
180) समय का सुदपयोग ही उन्नति का मूलमंत्र है।
181) एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
182) जाग्रत्‌ आत्मा का लक्षण है- सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ की ओर उन्मुखता।
183) परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं।
184) जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है।
185) बड़प्पन सादगी और शालीनता में है।
186) चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है।
187) मनुष्य उपाधियों से नहीं, श्रेष्ठ कार्यों से सज्जन बनता है।
188) धनवाद्‌ नहीं, चरित्रवान्‌ सुख पाते हैं।
189) बड़प्पन सुविधा संवर्धन में नहीं, सद्‌गुण संवर्धन का नाम है।
190) भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो।
191) वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
192) भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
193) प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है।
194) चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है।
195) आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है।
196) मनुष्य का अपने आपसे बढ़कर न कोई शत्रु है, न मित्र।
197) फूलों की तरह हँसते-मुस्कराते जीवन व्यतीत करो।
198) उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते है।
199) अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
200) भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं

प्रज्ञा सुभाषित-1

प्रज्ञा सुभाषित-1
1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहींं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
2) ज्ञान का अर्थ है-जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक्‌ करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है।
3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्द्‌ेश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
5) कुचक्र, छद्‌म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा।
6) जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है।
7) समर्पण का अर्थ है-पूर्णरूपेण प्रभु को हृदय में स्वीकार करना, उनकी इच्छा, प्रेरणाओं के प्रति सदैव जागरूक रहना और जीवन के प्रतयेक क्षण में उसे परिणत करते रहना।
8) मनोविकार भले ही छोटे हों या बड़े, यह शत्रु के समान हैं और प्रताड़ना के ही योग्य हैं। 9) सबसे महान्‌ धर्म है, अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनना।
10) सद्‌व्यवहार में शक्ति है। जो सोचता है कि मैं दूसरों के काम आ सकने के लिए कुछ करूँ, वही आत्मोन्नति का सच्चा पथिक है।
11) जिनका प्रत्येक कर्म भगवान्‌ को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है।
12) कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा।
13) सत्संग और प्रवचनों का-स्वाध्याय और सुदपदेशों का तभी कुछ मूल्य है, जब उनके अनुसार कार्य करने की प्रेरणा मिले। अन्यथा यह सब भी कोरी बुद्धिमत्ता मात्र है।
14) सब ने सही जाग्रत्‌ आत्माओं में से जो जीवन्त हों, वे आपत्तिकालीन समय को समझें और व्यामोह के दायरे से निकलकर बाहर आएँ। उन्हीं के बिना प्रगति का रथ रुका पड़ा है।
15) साधना एक पराक्रम है, संघर्ष है, जो अपनी ही दुष्प्रवृत्तियों से करना होता है।
16) आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है।
17) जैसे कोरे कागज पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है।
18) योग के दृष्टिकोण से तुम जो करते हो वह नहीं, बल्कि तुम कैसे करते हो, वह बहुत अधिक महत्त्पूर्ण है।
19) यह आपत्तिकालीन समय है। आपत्ति धर्म का अर्थ है-सामान्य सुख-सुविधाओं की बात ताक पर रख देना और वह करने में जुट जाना जिसके लिए मनुष्य की गरिमा भरी अंतरात्मा पुकारती है।
20) जीवन के प्रकाशवान्‌ क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते।
21) प्रखर और सजीव आध्यात्मिकता वह है, जिसमें अपने आपका निर्माण दुनिया वालों की अँधी भेड़चाल के अनुकरण से नहीं, वरन्‌ स्वतंत्र विवेक के आधार पर कर सकना संभव हो सके।
22) बलिदान वही कर सकता है, जो शुद्ध है, निर्भय है और योग्य है।
23) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
24) भगवान जिसे सच्चे मन से प्यार करते हैं, उसे अग्नि परीक्षाओं में होकर गुजारते हैं।
25) हम अपनी कमियों को पहचानें और इन्हें हटाने और उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियाँ स्थापित करने का उपाय सोचें इसी में अपना व मानव मात्र का कल्याण है।
26) प्रगति के लिए संघर्ष करो। अनीति को रोकने के लिए संघर्ष करो और इसलिए भी संघर्ष करो कि संघर्ष के कारणों का अन्त हो सके।
27) धर्म की रक्षा और अधर्म का उन्मूलन करना ही अवतार और उसके अनुयायियों का कत्र्तव्य है। इसमें चाहे निजी हानि कितनी ही होती हो, कठिनाई कितनी ही उइानी पड़ती हो।
28) अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
29) शरीर और मन की प्रसन्नता के लिए जिसने आत्म-प्रयोजन का बलिदान कर दिया, उससे बढ़कर अभागा एवं दुबुद्धि और कौन हो सकता है?
30) जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है।
31) आचारनिष्ठ उपदेशक ही परिवर्तन लाने में सफल हो सकते हैं। अनधिकारी ध्र्मोपदेशक खोटे सिक्के की तरह मात्र विक्षोभ और अविश्वास ही भड़काते हैं।
32) इन दिनों जाग्रत्‌ आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
33) जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमेंं महान्‌ परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है-प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ।
34) दैवी शक्तियों के अवतरण के लिए पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता।
35) आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
36) चरित्रवान्‌ व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है।-वाङ्गमय
37) व्यक्तिगत स्वार्थों का उत्सर्ग सामाजिक प्रगति के लिए करने की परम्परा जब तक प्रचलित न होगी, तब तक कोई राष्ट्र सच्चे अर्थों मेंं सामथ्र्यवान्‌ नहीं बन सकता है।-वाङ्गमय
38) युग निर्माण योजना का लक्ष्य है-शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, समता, उदारता, सहकारिता उत्पन्न करना।-वाङ्गमय
39) भुजार्ए साक्षात्‌ हनुमान हैं और मस्तिष्क गणेश, इनके निरन्तर साथ रहते हुए किसी को दरिद्र रहने की आवश्यकता नहीं।
40) विद्या की आकांक्षा यदि सच्ची हो, गहरी हो तो उसके रह्ते कोई व्यक्ति कदापि मूर्ख, अशिक्षित नहीं रह सकता।- वाङ्गमय
41) मनुष्य दु:खी, निराशा, चिंतित, उदिग्न बैठा रहता हो तो समझना चाहिए सही सोचने की विधि से अपरिचित होने का ही यह परिणाम है।-वाङ्गमय
42) धर्म अंत:करण को प्रभावित और प्रशासित करता है, उसमें उत्कृष्टता अपनाने, आदर्शों को कार्यान्वित करने की उमंग उत्पन्न करता है।-वाङ्गमय
43) जीवन साधना का अर्थ है- अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना।-वाङ्गमय
44) निकृष्ट चिंतन एवं घृणित कर्तृत्व हमारी गौरव गरिमा पर लगा हुआ कलंक है।-वाङ्गमय
45) आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।-वाङ्गमय
46) हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे।-वाङ्गमय
47) अपनी दुCताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती हैं, पर अपने आप से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता।
48) किसी महान्‌ उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना।
49) महानता का गुण न तो किसी के लिए सुरक्षित है और न प्रतिबंधित। जो चाहे अपनी शुभेच्छाओं से उसे प्राप्त कर सकता है।
50) सच्ची लगन तथा निर्मल उद्देश्य से किया हुआ प्रयत्न कभी निष्फल नहींं जाता।
51) खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा।
52) मनुष्य जन्म सरल है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
53) साधना का अर्थ है-कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए भी सत्प्रयास जारी रखना।
54) सज्जनों की कोई भी साधना कठिनाइयों में से होकर निकलने पर ही पूर्ण होती है।
55) असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
56) किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
57) अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
58) उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है-दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
59) वही जीवति है, जिसका मस्तिष्क ठण्डा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
60) चरित्र का अर्थ है- अपने महान्‌ मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना।
61) मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं।
62) अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान्‌ की सच्ची पूजा है।
63) जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ मेंं है।
64) हर वक्त, हर स्थिति मेंं मुस्कराते रहिये, निर्भय रहिये, कत्र्तव्य करते रहिये और प्रसन्न रहिये।
65) वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक; किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते हैं।
66) वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं।
67) मनोविकारों से परेशान, दु:खी, चिंतित मनुष्य के लिए उनके दु:ख-दर्द के समय श्रेष्ठ पुस्तकें ही सहारा है।
68) अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
69) विषयों, व्यसनों और विलासों मेंं सुख खोजना और पाने की आशा करना एक भयानक दुराशा है।
70) कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्यांकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
71) गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
72) परमात्मा की सृष्टि का हर व्यक्ति समान है। चाहे उसका रंग वर्ण, कुल और गोत्र कुछ भी क्यों न हो।
73) ज्ञान अक्षय है, उसकी प्राप्ति शैय्या तक बन पड़े तो भी उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
74) वास्तविक सौन्दर्य के आधर हैं-स्वस्थ शरीर, निर्विकार मन और पवित्र आचरण।
75) ज्ञानदान से बढ़कर आज की परिस्थितियों मेंं और कोई दान नहीं।
76) केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
77) इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है।
78) उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
79) शान्तिकुञ्ज एक विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारी सतयुगी सपनों का महल है।
80) शांन्किुञ्ज एक क्रान्तिकारी विश्वविद्यालय है। अनौचित्य की नींव हिला देने वाली यह संस्था प्रभाव पर्त की एक नवोदित किरण है।
81) गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्‌भव स्त्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है।
82) नित्य गायत्री जप, उदित होते स्वर्णिम सविता का ध्यान, नित्य यज्ञ, अखण्ड दीप का सान्निध्य, दिव्यनाद की अवधारणा, आत्मदेव की साधना की दिव्य संगम स्थली है-शांतिकुञ्ज गायत्री तीर्थ।
83) धर्म का मार्ग फूलों सेज नहीं, इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
84) मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है; परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
85) सलाह सबकी सुनो, पर करो वह जिसके लिए तुम्हारा साहस और विवेक समर्थन करे।
86) हम क्या करते हैं, इसका महत्त्व कम है; किन्तु उसे हम किस भाव से करते हैं इसका बहुत महत्त्व है।
87) संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है।
88) किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
89) दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
90) निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है।
91) दुनिया में भलमनसाहत का व्यवहार करने वाला एक चमकता हुआ हीरा है।
92) सज्जनता ऐसी विधा है जो वचन से तो कम; किन्तु व्यवहार से अधिक परखी जाती है।
93) अपनी महान्‌ संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
94) 'अखण्ड ज्योति' हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
95) चरित्रवान्‌ व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद्‌ भक्त हैं।
96) ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान्‌ है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
97) जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
98) परमात्मा जिसे जीवन मेंं कोई विशेष अभ्युदय-अनुग्रह करना चाहता है, उसकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया करता है।
99) देवमानव वे हैं, जो आदर्शों के क्रियान्वयन की योजना बनाते और सुविधा की ललक-लिप्सा को अस्वीकार करके युगधर्म के निर्वाह की काँटों भरी राह पर एकाकी चल पड़ते हैं।
100) अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हल्का झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।

स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द

  • उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये ।

  • जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।

  • तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।

  • ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।

  • ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।

  • मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।

  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।

  • जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा और सुरक्षा  प्रदान करता है।

  • आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।

  • मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।

  • हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
कुछ पल पूज्यनीय बबाईदा के संग:-
  • मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
जय गुरु !!!!!!
  • पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
  • सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

  • संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।





  • हे सखे, तुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (वि.स. ६/८)


  • बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।
(विवेकानन्द साहित्य खण्ड-४पन्ना-३१५) (४/३१५)


  • तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते -
  • तमाम संसा हिल उठता। क्या करूँ धीरे - धीरे अग्रसर होना पड रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स. ४/३८७)


  • किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स.४/३२०)


  • लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। (वि.स.६/८८)

  • श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। -- प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनीया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बडे - बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा।

  • वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो -- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। (वि.स. ४/३९५)

  • इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है -- बडे आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है -- एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ। )

  • मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना -- इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (वि.स.६/३५२)

  • मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसीको श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषओं में व्यवहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, कबीरदास के दोहे में है- "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। (वि.स.३/३८१)

  • अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दुसरों के धर्म का द्वेष न करना"; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकर, दिखानी होगी, याद रखना उन्की कृपा से सब ठीक हो जायेगा।

  • जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों।

  • नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्त: करण पूर्णतया शुध्द रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो -- प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते -- यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप्, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।(वि.स.१/३५०)

  • शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष , निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो -- सारा धर्म इसी में है। (वि.स.१/३७९)

  • क्या संस्कृत पढ रहे हो? कितनी प्रगति होई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो। (वि.स.१/३७९-८०)

  • शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। (वि.स.४/३१९)

  • बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी। (वि.स.१/३८०)

  • बालकों, दृढ बने रहो, मेरी सन्तानों में से कोई भी कायर न बने। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है - सदा उसीका साथ करो। बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता, जिससे तुम्हारे हृदय उछल पडते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ, जो कभी कम्पित न हो। दृढता के साथ लगे रहो, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानन्द। (वि.स.४/३४०)

  • जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। (वि.स.१/३८६)

  • जीस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। (वि.स.१/३८७)

  • पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। (वि.स.४/३४७)

  • भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है। (वि.स.४/३५१)

  • पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं। (वि.स.४/३५१)

  • साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना -- यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे -- माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। (वि.स.४/३५६)

  • बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। (वि.स.४/३३९)

  • महाशक्ति का तुममें संचार होगा -- कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। (वि.स.४/३६१)

  • बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएँ क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। (वि.स.४/३६२)

  • धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी। (वि.स.४/३६८)

  • जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। (वि.स.४/२७६)

  • ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो -- संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। (वि.स.४/२८०)

  • पूर्णतः निःस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जायेगी। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविशवास रखो, सच्चे और सहनशील बनो।(वि.स.४/२८४)

  • यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। (वि.स.४/२८५)

  • पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसीसे भविष्य में कलह का बिजारोपण होगा। (वि.स.४/३१२)

  • यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान् पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा। (वि.स.४/३१३)

  • गम्भीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। (वि.स.४/३१८)

  • बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी -- तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स.४/३३२)

  • किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे हैं; तब तक उन्के कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई ग़लती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक ग़लती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बडा हाथ है। (वि.स.४/३१५)

  • किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स. ४/३२०)

  • क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुध्दिमानी नहीं है। बुध्दिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। (वि.स. ४/३२८)

  • बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएम रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स. ४/३३२)

  • आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। (वि.स. ४/३३८)

  • न टालो, न ढूँढों -- भगवान अपनी इच्छानुसार जो कुछ भेहे, उसके लिए प्रतिक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है। (वि.स. ४/३४८)

  • शक्ति और विशवास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है। (वि.स. ४/३६९)

  • एक ही आदमी मेरा अनुसरण करे, किन्तु उसे मृत्युपर्यन्त सत्य और विश्वासी होना होगा। मैं सफलता और असफलता की चिन्ता नहीं करता। मैं अपने आन्दोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो। कपटी कार्यों से सामना पडने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। यही संसार है कि जिन्हें तुम सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हे धोखा देंगे। (वि.स. ४/३७७)



  • मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता है - मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना। (वि.स. ४/४०७)

  • जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेशवाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शान्ति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है।
(वि.स. १/३३४, ६ फरवरी, १८८९)

  • 'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यहि मेरा धर्म है। "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः- यही मेरा धर्म है।" (वि.स.४/३२८)

  • हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है -- उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान् में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे। (वि.स.४/३३०)

  • यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बिमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। परन्तु जब उसके सीर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है-- वह कितना ही फटा-पुराना क्यों न हो-- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! इससे अधिक विड्म्बना की बात क्या हो सकता है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं। ...वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? हें भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा। (वि.स.१/३८५)

  • प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पडती हैं। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अन्तराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मण्डल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आँधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आयें, वह मकान, जो सदियों की पुरानि चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। (वि.स.१/३८९)

  • यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे - स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं।
(वि.स)

  • मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्नराज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुध्दिवालो, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी - गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्द बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेरकर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उन्के हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को ज़ड - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनो। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ रहे हैं। क्या तुम्हे मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुडकर मत देखो; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पिछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोडने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है... ( वि.स.१/३९८-९९)

  • न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिन्का चित्र ब्रह्मनुसन्धान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। (वि.स.४/३३६)

  • यही रहस्य है। योग प्रवर्तक पंतजलि कहते हैं, " जब मनुष्य समस्त अलौकेक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह प्रमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसीका प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्य्क्ष आचरण नहीं करता। (वि.स.४/३३७)

  • एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है -- वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्यद्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्मलाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढव्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्त में सत्य का ही अनुसरण करेंगें। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बन्धनों को तोडकर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। (वि.स. ४/३३७)

  • जो सबका दास होता है, वही उन्का सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। (वि.स. ४/४०३)

  • वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाय निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतिक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। (वि.स. ४/३८७)

  • अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसीसे विरोध नहीं होता, वह किसीकी शान्ति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शान्ति भंग करता है। (वि.स. ४/३८१)

  • मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. ४/४०८)

अनमोल वचन

अनमोल वचन

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।
— संस्कृत सुभाषित
विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है ।
— मैथ्यू अर्नाल्ड
संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
— चाणक्य
सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।
— गोथे
मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ । वह कहो जो तुम जानते हो ।
— इमर्सन
किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा।
— सर विंस्टन चर्चिल
बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।
— आईजक दिसराली
— मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं।
सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नही हो सकती।
— राबर्ट हेमिल्टन

गणित
यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥
— वेदांग ज्योतिष
( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है । )
बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे ।
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥
— महावीराचार्य , जैन गणितज्ञ
( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता )
ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है ।
— गैलिलियो
गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है ; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी ।
— प्रो. हाल
काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है । इसका सम्बन्ध सी.डी से , कैट-स्कैन से , पार्किंग-मीटरों से , राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं ।
— गरफंकल , १९९७
गणित एक भाषा है ।
— जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स , अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री
लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ ।
यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते ।

विज्ञान
विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है ।
— विल्ल डुरान्ट
विज्ञान की तीन विधियाँ हैं - सिद्धान्त , प्रयोग और सिमुलेशन ।
विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ गलत हैं ; यह पूरी तरह ठीक है । ये ( गलत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते । अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं ।
— रिचर्ड फ़ेनिमैन

तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी
पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता ।
-आर्थर सी. क्लार्क
सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
— एस डीकैम्प
इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
— जेम्स के. फिंक
वैज्ञानिक इस संसार का , जैसे है उसी रूप में , अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं ।
— थियोडोर वान कार्मन
मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें ।
— सुश्री जैकब
इंजिनीररिंग संख्याओं मे की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है ।
जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं ; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है ।
— लार्ड केल्विन
आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है ।
तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नही कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।

कम्प्यूटर / इन्टरनेट
इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है.
-– टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक)
कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर खरीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं.
-– एडवर्ड शेफर्ड मीडस
कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं.
— क्लिफ़ोर्ड स्टॉल

कला
कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है ।
कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है।
- फ्रायड
मेरे पास दो रोटियां हों और पास में फूल बिकने आयें तो मैं एक रोटी बेचकर फूल खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता होगा तो मैं उसे गंवाऊगा नहीं।
- शेख सादी
कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है ।
–रामधारी सिंह दिनकर
कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी ।
–रवीन्द्रनाथ ठाकुर
रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है |
–मुक्ता
कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है ।
— रामधारी सिंह दिनकर
कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है ।
— अज्ञात
कवि और चित्रकार में भेद है । कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
— डा रामकुमार वर्मा

भाषा / स्वभाषा
निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल ।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥
— भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नही जानता ।
— गोथे
भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं ।
— बेन्जामिन होर्फ
शब्द विचारों के वाहक हैं ।
शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है ।
मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है।
- लुडविग विटगेंस्टाइन
आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना ।
..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है ।
— जार्ज ओर्वेल
शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है.
-– लिली टॉमलिन
श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं।
- शिशुपाल वध

साहित्य
साहित्य समाज का दर्पण होता है ।
साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । )
— भर्तृहरि
सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है |
–अनंत गोपाल शेवड़े
साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है , परंतु एक नया वातावरण देना भी है ।
— डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन

संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ
संघे शक्तिः ( एकता में शति है )
हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् ।
समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥
हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।
— महाभारत
यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च ।
पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥
जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे ।
— पंचतंत्र
को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ )
— भर्तृहरि
सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है )
संहतिः कार्यसाधिका । ( एकता से कार्य सिद्ध होते हैं )
— पंचतंत्र
दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं , बाकी सब काम की तलाश करते हैं ।
— कियोसाकी
मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
शठ सुधरहिं सतसंगति पाई ।
पारस परस कुधातु सुहाई ॥
— गोस्वामी तुलसीदास
गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है )
— गोस्वामी तुलसीदास
बिना सहकार , नहीं उद्धार ।
उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् ।
( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । )
नहीं संगठित सज्जन लोग ।
रहे इसी से संकट भोग ॥
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै ।
( एक साथ आओ , एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो )
अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है।
— रैन्डाल्फ
काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय
एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागिहै।
—–अज्ञात
जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग ।
— रहीम
जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
–मुक्ता
एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है ।
–अज्ञात

संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन
दुनिया की सबसे बडी खोज ( इन्नोवेशन ) का नाम है - संस्था ।
आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है ।
कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ ; यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है ।
उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।
बाँटो और राज करो , एक अच्छी कहावत है ; ( लेकिन ) एक होकर आगे बढो , इससे भी अच्छी कहावत है ।
— गोथे
व्यक्तियों से राष्ट्र नही बनता , संस्थाओं से राष्ट्र बनता है ।
— डिजरायली


साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न
कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।
पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥
— कबीर
साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं )
इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव मे इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है ।
जरूरी नही है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो , लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है ।
बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु , सत्यवादी , उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है ।
— आर. जी. इंगरसोल
जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है ।
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।
- द्रोणाचार्य
यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते।
- वल्लभभाई पटेल
वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है।
- डब्ल्यू.एच.आडेन
शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस।
- किर्केगार्द
किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है |
-– एरमा बॉम्बेक
हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है. दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है.
कमाले बुजदिली है , पस्त होना अपनी आँखों में ।
अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥
— चकबस्त
अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं।
–जवाहरलाल नेहरू
जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि ।
मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥
— कबीर
वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे ।
–अज्ञात


भय, अभय , निर्भय
तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् ।
आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥
भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो । आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये ।
— पंचतंत्र
जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते।
- पंचतंत्र
‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं।
- बर्ट्रेंड रसेल
मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से हम सब के लिए अभय हों। रात्रि के समय हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं में रहनेवाले हमारे मित्र बनकर रहें।
- अथर्ववेद
आदमी सिर्फ दो लीवर के द्वारा चलता रहता है : डर तथा स्वार्थ |
-– नेपोलियन
डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है |
-– एमर्सन
अभय-दान सबसे बडा दान है ।
भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं ।
— विवेकानंद


दोष / गलती / त्रुटि
गलती करने में कोई गलती नहीं है ।
गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है ।
— एल्बर्ट हब्बार्ड
गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं ।
बहुत सी तथा बदी गलतियाँ किये बिना कोई बडा आदमी नहीं बन सकता ।
— ग्लेडस्टन
मैं इसलिये आगे निकल पाया कि मैने उन लोगों से ज्यादा गलतियाँ की जिनका मानना था कि गलती करना बुरा था , या गलती करने का मतलब था कि वे मूर्ख थे ।
— राबर्ट कियोसाकी
सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं ।
— आस्कर वाइल्ड
गलती तो हर मनुष्य कर सकता है , पर केवल मूर्ख ही उस पर दृढ बने रहते हैं ।
— सिसरो
अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं ।
— अलेक्जेन्डर पोप
दोष निकालना सुगम है , उसे ठीक करना कठिन ।
— प्लूटार्क
त्रुटियों के बीच में से ही सम्पूर्ण सत्य को ढूंढा जा सकता है |
-– सिगमंड फ्रायड
गलतियों से भरी जिंदगी न सिर्फ सम्मनाननीय बल्कि लाभप्रद है उस जीवन से जिसमे कुछ किया ही नही गया।


अनुभव / अभ्यास
बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है.
करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।।
— रहीम
अनभ्यासेन विषं विद्या ।
( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है ( ?) )
यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय ।
बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥
अनुभव-प्राप्ति के लिए काफी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती ।
— अज्ञात
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते ।
–अज्ञात


सफलता, असफलता
असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया
गया ।
— श्रीरामशर्मा आचार्य
जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है ।
— हक्सले
जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नही हो सकता ।
— हर्मन मेलविल
असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है ।
— नैपोलियन हिल
सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं ।
असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौका मात्र है ।
— हेनरी फ़ोर्ड
दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है - एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं।
- थामस इलियट
दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं।
- इमर्सन
- हरिशंकर परसाई
किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना मत समझो ।
जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं । पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं , दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं ।
— जान मैकनरो
असफल होने पर , आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु , प्रयास छोड़ देने पर , आप की असफलता सुनिश्चित है।
— बेवेरली सिल्स
सफलता का कोई गुप्त रहस्य नहीं होता. क्या आप किसी सफल आदमी को जानते हैं जिसने अपनी सफलता का बखान नहीं किया हो.
-– किन हबार्ड
मैं सफलता के लिए इंतजार नहीं कर सकता था, अतएव उसके बगैर ही मैं आगे बढ़ चला.
-– जोनाथन विंटर्स
हार का स्‍वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है.
— माल्‍कम फोर्बस
हम सफल होने को पैदा हुए हैं, फेल होने के लिये नही .
— हेनरी डेविड
पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्‍ते होते हैं लेकिन व्‍यू सब जगह से एक सा दिखता है .
— चाइनीज कहावत
यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना
कि तुम पहले समूह में रहो क्‍योंकि वहाँ कम्‍पटीशन कम है .
— इंदिरा गांधी
सफलता के लिये कोई लिफ्‍ट नही जाती इसलिये सीढ़ीयों से ही जाना पढ़ेगा
हम हवा का रूख तो नही बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बदल सकते हैं।
सफलता सार्वजनिक उत्सव है , जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक ।
मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है ; असफला की सीढी है , हर किसी को प्रसन्न करने की चाह ।
— बिल कोस्बी
सफलता के तीन रहस्य हैं - योग्यता , साहस और कोशिश ।


सुख-दुःख , व्याधि , दया
संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है ? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है।
- खलील जिब्रान
संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।
- मृच्छकटिक
व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है।
- चाणक्यसूत्राणि-२२३
विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है।
- रावणार्जुनीयम्-५।८
मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं - एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई।
- बर्नार्ड शॉ
मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा।
- पुरुषोत्तमदास टंडन
मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है।
- सर विंस्टन चर्चिल
तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं।
-लहरीदशक
रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय ।
हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब कोय ॥
— रहीम
चाहे राजा हो या किसान , वह सबसे ज्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है ।
— गेटे
अरहर की दाल औ जड़हन का भात
गागल निंबुआ औ घिउ तात
सहरसखंड दहिउ जो होय
बाँके नयन परोसैं जोय
कहै घाघ तब सबही झूठा
उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा
—–घाघ


प्रशंसा / प्रोत्साहन
उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः ।
परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः ।
( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं । एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं , अहा ! क्या रूप है ? अहा ! क्या आवाज है ? )
मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है ।
–चार्ल्स श्वेव
आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है ।
— सेनेका
मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है ।
— विलियम जेम्स
अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो ।
— फ्रंकलिन
चापलूसी करना सरल है , प्रशंसा करना कठिन ।
मेरी चापलूसी करो, और मैं आप पर भरोसा नहीं करुंगा. मेरी आलोचना करो, और मैं आपको पसंद नहीं करुंगा. मेरी उपेक्षा करो, और मैं आपको माफ़ नहीं करुंगा. मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं कभी आपको नहीं भूलूंगा
-– विलियम ऑर्थर वार्ड
हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं |
-– नॉर्मन विंसेंट पील


मान , अपमान , सम्मान
धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी।
- माघकाव्य
इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है।
- कल्विन कूलिज
अपमानपूर्वक अमृत पीने से तो अच्छा है सम्मानपूर्वक विषपान |
-– रहीम
अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं।
- वक्रमुख
गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना।
- महात्मा गांधी
मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश ।
बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥
— कबीर


अभिमान / घमण्ड / गर्व
जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि ।
सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥
— कबीर


धन / अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य
दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति ( नाश ) होती है ।
— भर्तृहरि
हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः । ( सोना ( धन ) ही कमाओ , कलाएँ निष्फल है )
— महाकवि माघ
सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । ( सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं )
- भर्तृहरि
संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये ।
— शुक्राचार्य
आर्थस्य मूलं राज्यम् । ( राज्य धन की जड है )
— चाणक्य
मनुष्य मनुष्य का दास नही होता , हे राजा , वह् तो धन का दास् होता है ।
— पंचतंत्र
अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः । ( संसार मे धन ही आदमी का भाई है )
— चाणक्य
जहाँ सुमति तँह सम्पति नाना, जहाँ कुमति तँह बिपति निधाना ।
— गो. तुलसीदास
क्षणशः कण्शश्चैव विद्याधनं अर्जयेत ।
( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये ।
रुपए ने कहा, मेरी फिक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर.
-– चेस्टर फ़ील्ड
बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय।
घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।।
——(मुझे याद नहीं)
जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है ।
–अथर्ववेद
मुक्त बाजार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है ।
स्वार्थ या लाभ ही सबसे बडा उत्साहवर्धक ( मोटिवेटर ) या आगे बढाने वाला बल है ।
मुक्त बाजार उत्तरदायित्वों के वितरण की एक पद्धति है ।
सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करने से सभ्यता के विकास को जितना योगदान मिला है उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।
यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों मे बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है ।


धनी / निर्धन / गरीब / गरीबी
गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं ।
— डेनियल
गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के सम्बन्धी.
-– एनॉन
पैसे की कमी समस्त बुराईयों की जड़ है।
कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है |
– चाणक्य
निर्धनता से मनुष्य मे लज्जा आती है । लज्जा से आदमी तेजहीन हो जाता है । निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है ।
— वासवदत्ता , मृच्छकटिकम में
गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है ।
— महात्मा गाँधी


व्यापार
व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं )
महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही (उत्तम) मार्ग है )
( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है )
जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी ।
— आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में
तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।
राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री , इमानदारी और बराबरी पर ।
— कार्डेल हल्ल
व्यापारिक युद्ध , विश्व युद्ध , शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है , क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं ।
— थामस फुलर
आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है - या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये ।
कार्पोरेशन : व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति ।
— द डेविल्स डिक्शनरी
अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।


विकास / प्रगति / उन्नति
बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
विकास की कोई सीमा नही होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नही है।
— रोनाल्ड रीगन
अगर चाहते सुख समृद्धि, रोको जनसंख्या वृद्धि.
नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है.
भारत को अपने अतीत की जंज़ीरों को तोड़ना होगा। हमारे जीवन पर मरी हुई, घुन लगी लकड़ियों का ढेर पहाड़ की तरह खड़ा है। वह सब कुछ बेजान है जो मर चुका है और अपना काम खत्म कर चुका है, उसको खत्म हो जाना, उसको हमारे जीवन से निकल जाना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको हर उस दौलत से काट लें, हर उस चीज़ को भूल जायें जिसने अतीत में हमें रोशनी और शक्ति दी और हमारी ज़िंदगी को जगमगाया।
- जवाहरलाल नेहरू
सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो?
- डा. राधाकृष्णन


राजनीति / शाशन / सरकार
सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् ।
न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥
( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड है , न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । )
निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है ।
— दसकुमारचरित
यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है ।
— हेनरी एडम
विपत्तियों को खोजने , उसे सर्वत्र प्राप्त करने , गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है ।
— सर अर्नेस्ट वेम
मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है ।
— हेनरी एडम
राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो.
-– ओटो वान बिस्मार्क
सफल क्रांतिकारी , राजनीतिज्ञ होता है ; असफल अपराधी.
-– एरिक फ्रॉम
दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये ।
— रामायण
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है।
— चाणक्य
वही सरकार सबसे अच्छी होती है जो सबसे कम शाशन करती है ।
सरकार चाहे किसी की हो , सदा बनिया ही शाशन करते हैं ।


लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र / जनतन्त्र
लोकतन्त्र , जनता की , जनता द्वारा , जनता के लिये सरकार होती है ।
— अब्राहम लिंकन
लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है ।
— हेनरी एमर्शन फास्डिक
शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही मे अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है , बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है ।
— लार्ड बिवरेज
अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।
- महात्मा गांधी
जैसी जनता , वैसा राजा ।
प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन।
— महात्मा गांधी
सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है ।
–स्वामी विवेकानंद
लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है ।
— जयप्रकाश नारायण


नियम / कानून / विधान / न्याय
न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते ।
( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो )
— महाभारत
अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता ।
— थामस फुलर
थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता ।
— लुइस दी उलोआ
संविधान इतनी विचित्र ( आश्चर्यजनक ) चीज है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या चीज होती है , वह गदहा है ।
लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर ।
सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें ।
— इमर्शन
न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।
स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । )
कानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो , वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता।
— फिदेल कास्त्रो


व्यवस्था
व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है , शरीर का स्वास्थ्य है , शहर की शान्ति है , देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन ( बीम ) का घर से है , या हड्डी का शरीर से है , वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीजों से है ।
— राबर्ट साउथ
अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है ।
–एडमन्ड बुर्क
सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है , स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है ।
— विल डुरान्ट
हर चीज के लिये जगह , हर चीज जगह पर ।
— बेन्जामिन फ्रैंकलिन
सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है ।
— अलेक्जेन्डर पोप
परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है ।
— अल्फ्रेड ह्वाइटहेड


विज्ञापन
मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
- हरिशंकर परसाई


समय
आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः ।
स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥
करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता ।
वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है ।
— बेन्जामिन फ्रैंकलिन
समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं करतीं |
– अज्ञात्
जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात-दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते।
- महाभारत
किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
क्षणशः कणशश्चैव विद्याधनं अर्जयेत ।
( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये )
काल्ह करै सो आज कर, आज करि सो अब ।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥
— कबीरदास
समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक ।
चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की हूक ॥
अपने काम पर मै सदा समय से १५ मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।
हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
दीर्घसूत्री विनश्यति । ( काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है )
समयनिष्ठ होने पर समस्या यह हो जाती है कि इसका आनंद अकसर आपको अकेले लेना पड़ता है.
-– एनॉन
ऐसी घडी नहीं बन सकती जो गुजरे हुए घण्टे को फिर से बजा दे ।
— प्रेमचन्द


अवसर / मौका / सुतार / सुयोग
जो प्रमादी है , वह सुयोग गँवा देगा ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
बाजार में आपाधापी - मतलब , अवसर ।
धरती पर कोई निश्चितता नहीं है , बस अवसर हैं ।
— डगलस मैकआर्थर
संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं ।
आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा ।
— विन्स्टन चर्चिल
अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है ।
— अलबर्ट आइन्स्टाइन
हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है , जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं ।
— ली लोकोक्का
रहिमन चुप ह्वै बैठिये , देखि दिनन को फेर ।
जब नीके दिन आइहैं , बनत न लगिहैं देर ॥
न इतराइये , देर लगती है क्या |
जमाने को करवट बदलते हुए ||
कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है |
-– गोस्वामी तुलसीदास
वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है।
- सामवेद
का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।।
—–गोस्वामी तुलसीदास
अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख ।
दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥
—–गोस्वामी तुलसीदास


इतिहास
उचित रूप से ( देंखे तो ) कुछ भी इतिहास नही है ; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा है ।
— इमर्सन
इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जता है ।
इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है ।
इतिहास , असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है।
— नेपोलियन बोनापार्ट
जो इतिहास को याद नहीं रखते , उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है ।
— जार्ज सन्तायन
ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले ।
— मकियावेली , ” द प्रिन्स ” में
इतिहास स्वयं को दोहराता है , इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है ।
–सी डैरो
संक्षेप में , मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है ।
— एच जी वेल्स
सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया ।
— एस डीकैम्प
इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है ।
— जेम्स के. फिंक
इतिहास से हम सीखते हैं कि हमने उससे कुछ नही सीखा।


शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता
वीरभोग्या वसुन्धरा ।
( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है )
कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥
— पंचतंत्र
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?
खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले ।
खुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ?
— अकबर इलाहाबादी
कौन कहता है कि आसमा मे छेद हो सकता नही |
कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।|
यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते ।
तेजसा तस्य हीनस्य, पुरूषार्थो न सिध्यति ॥
( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नही दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता )
नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः ।
विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥
(जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है )
जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है।
- मृच्छकटिक
अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते।
— जोनाथन स्विफ्ट
मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है , पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये ।
— जयशंकर प्रसाद
आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए।
- श्रीमद्भागवत ८।१९।३९
तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की ।
–गुरू गोविन्द सिंह


युद्ध / शान्ति
सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है।
— पं. जवाहरलाल नेहरू
सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ।
( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( जमीन ) नहीं दूँगा ।
— दुर्योधन , महाभारत में
प्रागेव विग्रहो न विधिः ।
पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है ।
— पंचतन्त्र
यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो।
— अब्राहम लिंकन
शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है।
— डा॰राजेन्द्र प्रसाद
बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात काट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते।
- शम्स-ए-तबरेज़
शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति ।
–स्वामी ज्ञानानन्द


आत्मविश्वास / निर्भीकता
आत्मविश्वास , वीरता का सार है ।
— एमर्सन
आत्मविश्वास , सफलता का मुख्य रहस्य है ।
— एमर्शन
आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो ।
— डेल कार्नेगी
हास्यवृति , आत्मविश्वास (आने) से आती है ।
— रीता माई ब्राउन
मुस्कराओ , क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है , और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है ।
–एन्ड्री मौरोइस
करने का कौशल आपके करने से ही आता है ।


प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य
वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नही देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है ।
भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं , पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है ।
— एरिक हाफर
प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है ।
सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है ।
मूर्खतापूर्ण-प्रश्न , कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे ।
— स्टीनमेज
जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नही पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है ।
सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है , सबसे बडा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है ।
मैं छः ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ | इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ | इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन |
-– रुडयार्ड किपलिंग
यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)।
- नीतसार
शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है ।
— अब्राहम हैकेल


सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था
संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।
ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं , उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं ।
— हितोपदेश
पर्दे और पाप का घनिष्ट सम्बन्ध होता है ।
सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है ।
— थामस जेफर्सन
ज्ञान का विकास और प्रसार ही स्वतन्त्रता की सच्चा रक्षक है ।
— जेम्स मेडिसन
ज्ञान हमेशा ही अज्ञान पर शाशन करेगा ; और जो लोग स्व-शाशन के इच्छुक हैं उन्हें स्वयं को उन शक्तियों से सुसज्जित करना चाहिये जो ज्ञान से प्राप्त होती हैं ।
— पैट्रिक हेनरी


लिखना / नोट करना / सूची ( लिस्ट ) बनाना
कागज स्थान की बचत करता है , समय की बचत करता है और श्रम की बचत करता है ।
— ममफोर्ड
पठन किसी को सम्पूर्ण आदमी बनाता है , वार्तालाप उसे एक तैयार आदमी बनाता है , लेकिन लेखन उसे एक अति शुद्ध आदमी बनाता है ।
— बेकन
जब कुछ सन्देह हो , लिख लो ।
मैं यह जानने के लिये लिखता हूँ कि मैं सोचता क्या हूँ ।
— ग्राफिटो
कलम और कागज की सहायता से आप अशान्त वातावरण में भी ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं ।
मैने सीखा है कि किसी प्रोजेक्ट की योजना बनाते समय छोटी से छोटी पेन्सिल भी बडी से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।


परिवर्तन / बदलाव
क्षणे-क्षणे यद् नवतां उपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः । ( जो हर क्षण नवीन लगे वही रमणीयता का रूप है )
— शिशुपाल वध
आर्थिक समस्याएँ सदा ही केवल परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं ।
परिवर्तन विज्ञानसम्मत है । परिवर्तन को अस्वीकार नहीं किया जा सकता जबकि प्रगति राय और विवाद का विषय है ।
— बर्नार्ड रसेल
हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं ।
— महात्मा गाँधी
परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर अच्छा-खासा मानसिक प्रभाव पडता है । डरपोक लोगों के लिये यह धमकी भरा होता है क्योंकि उनको लगता है कि स्थिति और बिगड सकती है
आशावान लोगों के लिये यह उत्साहपूर्ण होता है क्योंकि स्थिति और बेहतर हो सकती है
और विश्वास-सम्पन्न लोगों के लिये यह प्रेरणादायक होता है क्योंकि स्थिति को
बेहतर बनाने की चुनौती विद्यमान होती है ।
— राजा ह्विटनी जूनियर
नयी व्यवस्था लागू करने के लिये नेतृत्व करने से अधिक कठिन कार्य नहीं है ।
— मकियावेली
यदि किसी चीज को अच्छी तरह समझना चाहते हो तो इसे बदलने की कोशिश करो ।
— कुर्त लेविन
आप परिवर्तन का प्रबन्ध नहीं कर सकते , केवल उसके आगे रह सकते हैं ।
— पीटर ड्रकर
स्व परिवर्तन से दूसरों का परिवर्तन करो.
चिड़िया कहती है, काश, मैं बादल होती । बादल कहता है, काश मैं चिड़िया होता।
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं।
- माल्कम एक्स
पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
- स्वामी विवेकानंद
परिवर्तन ही प्रगति है ।


नेतृत्व / प्रबन्धन
अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥
— शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।
मुखिया मुख सो चाहिये , खान पान कहुँ एक ।
पालै पोसै सकल अंग , तुलसी सहित बिबेक ॥
जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है , जो हमें वह कार्य करने के योग्य बना दे , जिसे हम कर सकते हैं ।
नेतृत्व का रहस्य है , आगे-आगे सोचने की कला ।
— मैरी पार्कर फोलेट
नेताओं का मुख्य काम अपने आस-पास नेता तैयार करना है ।
— मैक्सवेल
अपने अन्दर योग्यता का होना अच्छी बात है , लेकिन दूसरों में योग्यता खोज पाना ( नेता की ) असली परीक्षा है ।
— एल्बर्ट हब्बार्ड
अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही , अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला , प्रबन्धन की कला है ।
मैं सिर्फ उतने ही दिमाग का इस्तेमाल नहीं करता जितना मेरे पास है, बल्कि वह सब भी जो मैं उधार ले सकता हूँ.
-– वुडरो विलसन


निर्णय
हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है ।
— फुलर
जब कभी भी किसी सफल व्यापार को देखेंगे तो आप पाएँगे कि किसी ने कभी साहसी निर्णय लिया था.
अगर आप निर्णय नहीं ले पाते तो आप बास या नेता कुछ भी नहीं बन सकते ।
नब्बे प्रतिशत निर्णय अतीत के अनुभव के आधार पर लिये जा सकते हैं , केवल दस प्रतिशत के लिये अधिक विश्लेषण की जरूरत होती है ।
निर्णय लेने से उर्जा उत्पन्न होती है , अनिर्णय से थकान ।
— माइक हाकिन्स
काम करने में ज्यादा ताकत नहीं लगती , लेकिन यह निर्णय करने में ज्यादा ताकत लगती है कि क्या करना चाहिये ।
निर्णय के क्षणों मे ही आप की भाग्य का निर्माण होता है ।


विसंगति / विरोधाभास / उल्टी-गंगा / पैराडाक्स
सिर राखे सिर जात है , सिर काटे सिर होय ।
जैसे बाती दीप की , कटि उजियारा होय ॥
— कबीरदास
लघुता से प्रभुता मिलै , कि प्रभुता से प्रभु दूर ।
ची‍टी ले शक्कर चली , हाथी के सिर धूल ॥
— बिहारी
थोडा चुराओ , जेल जाओ ।
अधिक चुराओ , राजा बन जाओ ॥
— बाब डाइलन
लोग आदेश के बजाय मिथक से , तर्क के बजाय नीति-कथा से , और कारण के बजाय संकेत से चलाये जाते हैं ।
कहकर बताने के बहुत से प्रयत्न अत्यधिक कह देने के कारण व्यर्थ चले जाते हैं ।
ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है ।
— चार्ल्स डार्विन
संसार मे समस्या यह है कि मूढ लोग अत्यन्त सन्देहरहित होते है और बुद्धिमान सन्देह से परिपूर्ण ।
— जार्ज बर्नार्ड शा
किसी विषय से परिचित होने का सर्वोत्तम उपाय है , उस विषय पर एक किताब लिखना ।
— डिजराइली
विद्वानो की विद्वता बिना काम के बैठने से आती है ; और जिस व्यक्ति के पास कोई काम नहीं है , वह महान बन जायेगा ।
शब्दो का एक महान उपयोग है , अपने विचारों को छिपाने में ।
वह आदमी अवश्य ही अत्यन्त अज्ञानी होगा ; वह उन सारे प्रश्नों का उत्तर देता है जो उससे पूछे जाते हैं ।
यदि तुम्हारे कोई दुश्मन नही हैं , यह इसका संकेत है कि भाग्य तुमको भूल गयी है ।
कोई खोज जितनी ही मौलिक होती है , बाद में उतनी ही साफ ( स्वतः स्पष्ट ) लगती है ।
आलसी लोग सदा व्यस्त रहते हैं ।
अधिक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के सफल होने की सम्भावना ज्यादा होती है ।
शक्ति के दुख वास्तविक हैं और सुख काल्पनिक ।


कल्पना / चिन्तन / ध्यान / मेडिटेशन
अपनी याददास्त के सहारे जीने के बजाय अपनी कल्पना के सहरे जिओ ।
— लेस ब्राउन
केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं ।
व्यावहारिक जीवन की उलझनों का समाधा किन्हीं नयी कल्पनाओं में मिलेगा , उन्हें ढूढो ।
— श्रीराम शर्मा आचार्य
कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है ।
— नैपोलियन
कल्पना , ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है , कल्पना संसार को घेर लेती है ।
— अलबर्ट आइन्स्टीन
ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते ।
( ध्यान , ज्ञान से बढकर है )
ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है , एकाग्रता । शिक्षा का सार है , मन को एकाग्र करना , तथ्यों का संग्रह करना नहीं ।
— श्री माँ
एकाग्रता ही सभी नश्वर सिद्धियों का शाश्वत रहस्य है ।
— स्टीफन जेविग
तर्क , आप को किसी एक बिन्दु “क” से दूसरे बिन्दु “ख” तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन , कल्पना , आप को सर्वत्र ले जा सकती है।
— अलबर्ट आइन्सटीन
जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है ।
–डा विक्रम साराभाई


चिन्तन / मनन
जब सब एक समान सोचते हैं तो कोई भी नहीं सोच रहा होता है ।
— जान वुडन


स्वतंत्र चिन्तन / चिन्तन की स्वतंत्रता
कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ?
- विवेकानंद
मानवी चेतना का परावलंबन - अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना , आज की सबसे बडी समस्या है । लोग स्वतन्त्र चिन्तन करके परमार्थ का प्रकाशन नहीं करते बल्कि दूसरों का उटपटांग अनुकरण करके ही रुक जाते हैं ।
— श्रीराम शर्मा आचार्य
बिना वैचारिक-स्वतन्त्रता के बुद्धि जैसी कोई चीज हो ही नहीं सकती ; और बोलने की स्वतन्त्रता के बिना जनता की स्वतन्त्रता नहीं हो सकती।
— बेन्जामिन फ़्रैंकलिन
प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
— इमर्सन
शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
ग्रन्थ , पन्थ हो अथवा व्यक्ति , नहीं किसी की अंधी भक्ति ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है , किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना ।
— स्काट फिट्जेराल्ड
आत्मदीपो भवः ।
( अपना दीपक स्वयं बनो । )
— गौतम बुद्ध
इतने सारे लोग और इतनी थोडी सोच !
सभी प्राचीन महान नहीं है और न नया, नया होने मात्र से निंदनीय है। विवेकवान लोग स्वयं परीक्षा करके प्राचीन और नवीन के गुण-दोषों का विवेचन करते हैं लेकिन जो मूढ़ होते हैं, वे दूसरों का मत जानकर अपनी राय बनाते हैं।
- कालिदास


तर्कवाद / रेशनालिज्म / क्रिटिकल चिन्तन
पाहन पूजे हरि मिलै , तो मैं पुजूँ पहार ।
ताती यहु चाकी भली , पीस खाय संसार ॥
— कबीर
कांकर पाथर जोरि के , मसजिद लै बनाय ।
ता चढि मुल्ला बाक दे , क्या बहरा भया खुदाय ॥
— कबीर


मौन
मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है ।
— बेकन
मौनं सर्वार्थसाधनम् ।
— पंचतन्त्र
( मौन सारे काम बना देता है )
आओं हम मौन रहें ताकि फ़रिस्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें ।
— एमर्शन
मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाक-शक्ति होती है ।
— कार्लाइल
मौनं स्वीकार लक्षणम् ।
( किसी बात पर मौन रह जाना उसे स्वीकार कर लेने का लक्षण है । )
कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं |
-– ओविड
मूरख के मुख बम्ब हैं , निकसत बचन भुजंग।
ताकी ओषधि मौन है , विष नहिं व्यापै अंग।।
वार्तालाप बुद्धि को मूल्यवान बना देता है , किन्तु एकान्त प्रतिभा की पाठशाला है ।
— गिब्बन
मौन और एकान्त,आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं ।
— बिनोवा भावे
मौन , क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है ।
— स्वामी विवेकानन्द


उपाय / सुविचार / सुविचारों की शक्ति / मंत्र / उपाय-महिमा / समस्या-समाधान / आइडिया
मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं , विचार हैं ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
मनःस्थिति बदले , तब परिस्थिति बदले ।
- पं श्री राम शर्मा आचार्य
उपायेन हि यद शक्यं , न तद शक्यं पराक्रमैः ।
( जो कार्य उपाय से किया जा सकता है , वह पराक्रम से नही किया जा सकता । )
— पंचतन्त्र
विचारों की शक्ति अकूत है । विचार ही संसार पर शाशन करते है , मनुष्य नहीं ।
— सर फिलिप सिडनी
लोगों के बारे मे कम जिज्ञासु रहिये , और विचारों के सम्बन्ध में ज्यादा ।
विचार संसार मे सबसे घातक हथियार हैं ।
— डब्ल्यू. ओ. डगलस
किस तरह विचार संसार को बदलते हैं , यही इतिहास है ।
विचारों की गति ही सौन्दर्य है।
— जे बी कृष्णमूर्ति
ग़लतियाँ मत ढूंढो , उपाय ढूंढो |
-– हेनरी फ़ोर्ड
जब तक आप ढूंढते रहेंगे, समाधान मिलते रहेंगे |
-– जॉन बेज


कार्यारम्भ / कार्य / क्रिया / कर्म
ज्ञानं भार: क्रियां बिना ।
आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है ।
— हितोपदेश
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: ।
नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं , मनोरथ मात्र से नहीं । सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते ।
— हितोपदेश
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् ।
( कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है , फल में कभी भी नहीं )
— गीता
देहि शिवा बर मोहि इहै , शुभ करमन तें कबहूँ न टरौं ।
जब जाइ लरौं रन बीच मरौं , या रण में अपनी जीत करौं ॥
— गुरू गोविन्द सिंह
निज-कर-क्रिया रहीम कहि , सिधि भावी के हाथ ।
पांसा अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ॥
जो क्रियावान है , वही पण्डित है । ( यः क्रियावान् स पण्डितः )
सकल पदारथ एहि जग मांही , करमहीन नर पावत नाही ।
— गो. तुलसीदास
जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है ।
— नार्मन कजिन
आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है ।
- सैली बर्जर
जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं ।
— गोथे
छोटा आरम्भ करो , शीघ्र आरम्भ करो ।
प्रारम्भ के समान ही उदय भी होता है । ( प्रारम्भसदृशोदयः )
— रघुवंश महाकाव्यम्
पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है , उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता ।
यो विषादं प्रसहते विक्रमे समुपस्थिते ।
तेजसा तस्य हीनस्य पुरुषार्थो न सिद्धयति ॥
- - वाल्मीकि रामायण
शुभारम्भ, आधा खतम ।
हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है ।
— चीनी कहावत
सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है । जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है ।
— इमर्सन
सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है ।
— एडिशन
उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।
— जान फ़्लीचर
मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ।
— लाक
ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो.
जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है |
– वेदव्यास
अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है।
- ऐतरेय ब्राह्मण-३३।३
जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है।
- गेटे
उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं ।
— जान फ़्लीचर
मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है ।
— जान लाक
मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है ।
–विनोबा
सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है ।
— कथा सरित्सागर
भलाई का एक छोटा सा काम हजारों प्रार्थनाओं से बढकर है ।


कार्यनीति
एक साधै सब सधे, सब साधे सब जाये
रहीमन, मुलही सिंचीबो, फुले फले अगाय ।
–रहीम
जिस काम को बिल्कुल किया ही नहीं जाना चाहिये , उस काम को बहुत दक्षता के साथ करने के समान कोई दूसरा ब्यर्थ काम नहीं है ।
— पीटर एफ़ ड्रूकर
अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है ।
— थामस कार्लाइल
यदि सारी आपत्तियों का निस्तारण करने लगें तो कोई काम कभी भी आरम्भ ही नही हो सकता ।
एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है ।
— सैमुएल स्माइल


उद्यम / उद्योग / उद्यमशीलता / उत्साह / प्रयास / प्रयत्न
संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
अकर्मण्यता का दूसरा नाम मृत्यु है |
-– मुसोलिनी
यह ठीक है कि आशा जीवन की पतवार है। उसका सहारा छोड़ने पर मनुष्य भवसागर में बह जाता है पर यदि आप हाथ-पैर नहीं चलायेंगे तो केवल पतवार की उपस्थिति से गंतव्य तट पर थोड़े ही पहुंच जायेंगे।
- लुकमान
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता ।
— भर्तृहरि


परिश्रम
मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – “भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ” – मुहम्मद अली
कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है. आलस्य से वर्तमान |
-– स्टीवन राइट
आराम हराम है.
चींटी से परिश्रम करना सीखें |
— अज्ञात
चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है।
- बैंजामिन फ्रैंकलिन
चरैवेति , चरैवेति । ( चलते रहो , चलते रहो )
सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए ?
- रामतीर्थ
जहां गति नहीं है वहां सुमति उत्पन्न नहीं होती है। शूकर से घिरी हुई तलइया में सुगंध कहां फैल सकती है?
- शिवशुकीय


रचनाशीलता / श्रृजनशीलता / क्रियेटिविटी /
खोजना , प्रयोग करना , विकास करना , खतरा उठाना , नियम तोडना , गलती करना और मजे करना , श्रृजन है ।
स्पर्धा मत करो , श्रृजन करो । पता करो कि दूसरे सब लोग क्या कर रहे हैं , और फिर उस काम को मत करो ।
— जोल वेल्डन
वही असम्भव को करने में सक्षम है , जो व्यक्ति बे-सिर-पैर की चीजें (एब्सर्ड) करने की कोशिश करता है ।
रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
यदि आप नृत्य कर रहे हों , तो आप को ऐसा लगना चाहिए कि , आप को , देखने वाला कोई भी आस-पास मौजूद नहीं है। यदि आप किसी संगीत की प्रस्तुति कर रहे हों , तो आप को ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि , आप की प्रस्तुति पर , आप के सिवा अन्य किसी का भी ध्यान नहीं है । और , यदि आप सचमुच में , किसी से प्रेम कर बैठें हों , तो आप में ऐसी अनुभूति होनी चाहिए , कि , आप पहले कभी भी भावनात्मक तौर पर आहत नहीं हुए हैं।
— मार्क ट्वेन


विद्या / सीखना / शिक्षा / ज्ञान / बुद्धि / प्रज्ञा / विवेक / प्रतिभा /
विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् ।
( विद्या-धन सभी धनों मे श्रेष्ठ है )
जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है ।
(बुद्धिः यस्य बलं तस्य )
— पंचतंत्र
स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते ।
(राजा अपने देश में पूजा जाता है , विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है )
काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |
अल्पहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षण्म् ।|
( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं : कौवे जैसी दृष्टि , बकुले जैसा ध्यान , कुत्ते जैसी निद्रा , अल्पहारी और गृहत्यागी । )
अनभ्यासेन विषम विद्या ।
( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है )
सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम ।
सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम ॥
ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना ।
–डेविड बोम (१९१७-१९९२)
सत्य की सारी समझ एक उपमा की खोज मे निहित है ।
— थोरो
प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं ।
— इमर्सन
वही विद्या है जो विमुक्त करे । (सा विद्या या विमुक्तये )
विद्या के समान कोई आँख नही है । ( नास्ति विद्या समं चक्षुः )
खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है ।
- - फ़ोर्ब्स
अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है ।
— आइन्स्टीन
कोई भी चीज जो सोचने की शक्ति को बढाती है , शिक्षा है ।
शिक्षा और प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य समस्या-समाधान होना चाहिये ।
संसार जितना ही तेजी से बदलता है , अनुभव उतना ही कम प्रासंगिक होता जाता है । वो जमाना गया जब आप अनुभव से सीखते थे , अब आपको भविष्य से सीखना पडेगा ।
गिने-चुने लोग ही वर्ष मे दो या तीन से अधिक बार सोचते हैं ; मैने हप्ते में एक या दो बार सोचकर अन्तर्राष्ट्रीय छवि बना ली है ।
— जार्ज बर्नार्ड शा
दिमाग जब बडे-बडे विचार सोचने के अनुरूप बडा हो जाता है, तो पुनः अपने मूल आकार में नही लौटता । —
जब सब लोग एक समान सोच रहे हों तो समझो कि कोई भी नही सोच रहा । — जान वुडेन
पठन तो मस्तिष्क को केवल ज्ञान की सामग्री उपलब्ध कराता है ; ये तो चिन्तन है जो पठित चीज को अपना बना देती है ।
— जान लाक
एकाग्र-चिन्तन वांछित फल देता है ।
- जिग जिग्लर
दिमाग पैराशूट के समान है , वह तभी कार्य करता है जब खुला हो ।
— जेम्स देवर
अगर हमारी सभ्यता को जीवित रखना है तो हमे महान लोगों के विचारों के आगे झुकने की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं ।
— कार्ल पापर
सारी चीजों के बारे मे कुछ-कुछ और कुछेक के बारे मे सब कुछ सीखने की
कोशिश करनी चाहिये ।
— थामस ह. हक्सले
शिक्षा प्राप्त करने के तीन आधार-स्तंभ हैं - अधिक निरीक्षण करना , अधिक अनुभव करना और अधिक अध्ययन करना ।
— केथराल
शिक्षा , राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है ।
— बर्क
अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है ।
— डिजरायली
ज्ञान एक खजाना है , लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है।
— थामस फुलर
स्कूल को बन्द कर दो ।
— इवान इलिच
प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी , इमानदारी , जिम्मेदारी और बहादुरी ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया , उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया |
-– विनोबा
बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है।
- स्वामी रामदेव
जेहिं बिधना दारुण दुःख देहीं। ताकै मति पहिलेहि हरि लेंहीं।।
—–गोस्वामी तुलसीदास
पशु पालक की भांति देवता लाठी ले कर रक्षा नही करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धी से समायुक्त कर देते है ।
— महाभारत -उद्योग पर्व
जो जानता नही कि वह जानता नही,वह मुर्ख है- उसे दुर भगाओ। जो जानता है कि वह जानता नही, वह सीधा है - उसे सिखाओ. जो जानता नही कि वह जानता है, वह सोया है- उसे जगाओ । जो जानता है कि वह जानता है, वह सयाना है- उसे गुरू बनाओ ।
— अरबी कहावत
विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है ।
— हितोपदेश
जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है ।
— नारदभक्ति
अनन्तशास्त्रं वहुलाश्च विद्याः , अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च ।
यद्सारभूतं तदुपासनीयम् , हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥
— चाणक्य
( शास्त्र अनन्त है , बहुत सारी विद्याएँ हैं , समय अल्प है और बहुत सी बाधायें है । ऐसे में , जो सारभूत है ( सरलीकृत है ) वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी जाता है )


पण्डित / मूर्ख / विज्ञ / प्रज्ञ / मतिमान /
झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञाः ।
( जो झट से दूसरे का आशय जान ले वही बुद्धिमान है । )
सुख दुख या संसार में , सब काहू को होय ।
ज्ञानी काटै ज्ञान से , मूरख काटै रोय ॥
आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः ।
( जो सारे प्राणियों को अपने समान देखता है , वही पण्डित है । )
ज्ञानी आदमी के खोखले ज्ञान से सावधान, वह अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है।
- बर्नारड शा
सब तै भले बिमूढ़, जिन्हैं न ब्यापै जगत गति
——-गोस्वामी तुलसीदास
जाकी जैसी बुद्धि है , वैसी कहे बनाय ।
उसको बुरा न मानिये , बुद्धि कहाँ से लाय ॥
— रहीम
सर्दी-गर्मी, भय-अनुराग, सम्पती अथवा दरिद्रता ये जिसके कार्यो मे बाधा नही डालते वही ज्ञानवान (विवेकशील) कहलाता है ।
सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। -अज्ञात
बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण हैं। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी हानि सह ले लेकिन विवाद न करे ।
–हितोपदेश


सज्जन / साधु / महापुरुष / दुर्जन / खल / दुष्ट / शठ
साधु ऐसा चाहिये , जैसा सूप सुभाय ।
सार सार को गहि रहै , थोथा देय उडाय ॥
— कबीर
शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता बरतनी चाहिये )
— चाणक्य
बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है |
– शेख सादी
महान पुरुष की पहली पहचान उसकी विनम्रता है.
भरे बादल और फले वृक्ष नीचे झुकरे है , सज्जन ज्ञान और धन पाकर विनम्र बनते हैं.
चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं।
- प्रेमचन्द
जो दुष्ट का सत्कार करता है वह मानो आकाश में बीज बोता है, हवा में सुंदर चित्र बनाता है और पानी में रेखा खींचता है।
- प्रास्ताविकविलास
जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है।
- वासवदत्ता
झूठा मीठे बचन कहि रिन उधार लै जाय
लेत परम सुख ऊपजै लै के दियो न जाय
लै के दियो न जाय ऊंच अरू नीच बतावै
रिन उधार की रीति माँगते मारन धावै
कह गिरधर कविराय रहै वो मन में रूठा
बहुत दिना होइ जायँ कहै तेरो कागद झूठा
—–गिरधर
भले भलाइहिं सों लहहिं, लहहिं निचाइहिं नीच।
सुधा सराहिय अमरता, गरल सराहिय मीच।।
——गोस्वामी तुलसीदास
रहिमन वहाँ न जाइये , जहाँ कपट को हेत ।
हम तो ढारत ढेकुली , सींचत आपनो खेत ॥
( ढेंकुली = कुँए से पानी निकालने का बर्तन )
रहिमन ओछे नरन सों , बैर भली ना प्रीति ।
काटे चाटे श्वान के , दोऊ भाँति बिपरीत ॥
सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है ।
–कबीर
कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं ।
— श्री हर्ष


विवेक
विवेक , बुद्धि की पूर्णता है । जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है ।
— ब्रूचे
विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान , सतत प्रसन्नता है ।
— मान्तेन
तुलसी असमय के सखा , धीरज धर्म विवेक ।
साहित साहस सत्यव्रत , राम भरोसो एक ॥
ज्ञान भूत है , विवेक भविष्य ।
जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, जिसने अपने खेत में मेहनत तो की पर बीज बोये ही नहीं।
- शेख सादी


भविष्य / भविष्य वाणी
अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा ।
द्वावेतो सुखमेधते , यदभविष्यो विनश्यति ॥
— पंचतन्त्र
भविष्य का निर्माण करने वाला और प्रत्युत्पन्नमति ( हाजिर जबाब ) ये दोनो सुख भोगते हैं । “जैसा होना होगा , होगा” ऐसा सोचने वाले का विनाश हो जाता है ।
भविष्य के बारे में पूर्वकथन का सबसे अच्छा तरीका भविष्य का निर्माण करना है ।
— डा. शाकली
किसी भी व्यक्ति का अतीत जैसा भी हो , भविष्य सदैव बेदाग होता है।
— जान राइस
तुलसी जसि भवतव्यता तैसी मिलै सहाय।
आपु न आवै ताहिं पै ताहिं तहाँ लै जाय।।
—–गोस्वामी तुलसीदास
करमगति टारे नाहिं रे टरी ।
—–सन्त कबीर
होनवार बिरवान के होत चीकने पात।
—–अज्ञात


आशा / निराशा / आशावाद / निराशावाद
अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है.
नर हो न निराश करो मन को ।
कुछ काम करो , कुछ काम करो ।
जग में रहकर कुछ नाम करो ॥
— मैथिलीशरण गुप्त
बाग में अफवाह के , मुरझा गये हैं फूल सब ।
गुल हुए गायब अरे , फल बनने के लिये ॥
निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है ।
— प्रेमचन्द
खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो |
– शेख सादी
निराशा मूर्खता का परिणाम है।
- डिज़रायली
मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए।
- हितोपदेश
- बर्नार्ड इगेस्किलन
अगर तुम पतली बर्फ पर चलने जा रहे हो तो हो सकता है कि तुम डांस भी करने लगो।
निराशावाद ने आज तक कोई जंग नही जीती .
— ड्‍वाइन डी. आइसनहॉवर
निराशावादीः एक ऐसा इंसान जिसके पास अगर दो शैतान चुनने की च्‍वाइश हो तो वो दोनो चुनता है .
— आस्‍कर वाइल्‍ड
दो आदमी एक ही वक्‍त जेल की सलाखों से बाहर देखते हैं, एक को कीचड़ दिखायी देता है और दूसरे को तारे .
— फ्रेडरिक लेंगब्रीज
निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है ।
— रश्मिमाला
हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है ।
— वाल्मीकि


सम्भव / असम्भव / कठिन / सरल
हर अच्छा काम पहले असंभव नजर आता है.
जो आपको कल कर देना चाहिए था, वही संसार का सबसे कठिन कार्य है |
– कन्फ्यूशियस


चिन्ता / तनाव / अवसाद
चिन्ता एक प्रकार की कायरता है और वह जीवन को विषमय बना देती है ।
— चैनिंग
रहिमन कठिन चितान तै , चिन्ता को चित चैत ।
चिता दहति निर्जीव को , चिन्ता जीव समेत ॥
( हे मन तू चिन्ता के बारे में सोच , जो चिता से भी भयंकर है । क्योंकि चिता तो निर्जीव ( मरे हुए को ) जलाती है , किन्तु चिन्ता तो सजीव को ही जलाती है । )
चिन्ता ऐसी डाकिनी , काट कलेजा खाय ।
वैद बेचारा क्या करे , कहाँ तक दवा लगाय ॥
— कबीर


आत्म-निर्भरता
जो आत्म-शक्ति का अनुसरण करके संघर्ष करता है , उसे महान विजय अवश्य मिलती है।
- भरत पारिजात ८।३४


भारत
भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है : भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है , अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है , बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है , ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है । अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है ।
— विल्ल डुरान्ट , अमरीकी इतिहासकार
हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती ।
— अलबर्ट आइन्स्टीन
भारत मानव जाति का पलना है , मानव-भाषा की जन्मस्थली है , इतिहास की जननी है , पौराणिक कथाओं की दादी है , और प्रथाओं की परदादी है । मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है ।
— मार्क ट्वेन
यदि इस धरातल पर कोई स्थान है जहाँ पर जीवित मानव के सभी स्वप्नों को तब से घर मिला हुआ है जब मानव अस्तित्व के सपने देखना आरम्भ किया था , तो वह भारत ही है ।
— फ्रान्सीसी विद्वान रोमां रोला
भारत अपनी सीमा के पार एक भी सैनिक भेजे बिना चीन को जीत लिया और लगभग बीस शताब्दियों तक उस पर सांस्कृतिक रूप से राज किया ।
— हू शिह , अमेरिका में चीन के भूतपूर्व राजदूत
यूनान, मिश्र, रोमां , सब मिट। गये जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी , नाम-ओ-निशां हमारा ॥
कुछ बात है कि हस्ती , मिटती नहीं हमारी ।
शदियों रहा है दुश्मन , दौर-ए-जहाँ हमारा ॥
— मुहम्मद इकबाल
गायन्ति देवाः किल गीतकानि , धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पद् मार्गभूते , भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वाद् ॥
देवतागण गीत गाते हैं कि स्वर्ग और मोक्ष को प्रदान करने वाले मार्ग पर स्थित भारत के लोग धन्य हैं । ( क्योंकि ) देवता भी जब पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं तो यहीं जन्मते हैं ।
एतद्देशप्रसूतस्य सकासादग्रजन्मनः ।
स्व-स्व चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्व मानवा: ॥
— मनु
पुराने काल में , इस देश ( भारत ) में जन्में लोगों के सामीप्य द्वारा ( साथ रहकर ) पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली ।


संस्कृत
भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतम् संस्कृतिस्तथा ।
( भारत की प्रतिष्ठा दो चीजों में निहित है , संस्कृति और संस्कृत । )
इसकी पुरातनता जो भी हो , संस्कृत भाषा एक आश्चर्यजनक संरचना वाली भाषा है । यह ग्रीक से अधिक परिपूर्ण है और लैटिन से अधिक शब्दबहुल है तथा दोनों से अधिक सूक्ष्मता पूर्वक दोषरहित की हुई है ।
— सर विलियम जोन्स
सभ्यता के इतिहास में , पुनर्जागरण के बाद , अट्ठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संस्कृत साहित्य की खोज से बढकर कोई विश्वव्यापी महत्व की दूसरी घटना नहीं घटी है ।
–आर्थर अन्थोनी मैक्डोनेल्
कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है ।
— फोर्ब्स पत्रिका ( जुलाई , १९८७ )
यह लेख इस बात को प्रतिपादित करता है कि एक प्राकृतिक भाषा ( संस्कृत ) एक कृत्रिम भाषा के रूप में भी कार्य कर सकती है , और कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में किया गया अधिकाश काम हजारों वर्ष पुराने पहिये ( संस्कृत ) को खोजने जैसा ही रहा है ।
— रिक् ब्रिग्स , नासा वैज्ञानिक ( १९८५ में )


हिन्दी


देवनागरी
हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी , उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है ।
-— आचार्य विनबा भावे
देवनागरी किसी भी लिपि की तुलना में अधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित लिपि है ।
-— सर विलियम जोन्स
मनव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमालाओं में नागरी सबसे अधिक पूर्ण वर्णमाला है ।
— जान क्राइस्ट
उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी ।
-— खुशवन्त सिंह


महात्मा गाँधी
आने वाली पीढियों को विश्वास करने में कठिनाई होगी कि उनके जैसा कोई हाड-मांस से बना मनुष्य इस धरा पर चला था ।
— अलबर्ट आइन्स्टीन
मैं और दूसरे लोग क्रान्तिकारी होंगे, लेकिन हम सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महात्मा गाँधी के शिष्य हैं , इससे न कम न ज्यादा ।
— हो ची मिन्ह
उनके अधिकांश सिद्धान्त सार्वत्रिक-उपयोग वाले और शाश्वत-सत्यता वाले हैं ।
— यू थान्ट
.. और फिर गाँधी नामक नक्षत्र का उदय हुआ । उसने दिखाया कि अहिंसा का सिद्धान्त सम्भव है ।
— अर्नाल्ड विग
जब तक स्वतंत्र लोग तथा स्वतंत्रता और न्याय के चाहने वाले रहेंगे, तब तक महात्मा गाँधी को सदा याद किया जायेगा ।
–हैली सेलेसी
मेरे हृदय मैं महात्मा गाँधी के लिये अपार प्रशंसा और सम्मान है । वह एक महान व्यक्ति थे और उनको मानव-प्रकृति का गहन ज्ञान था ।
— महा आत्मा , दलाई लामा


रामचरितमानस


मानसिक परिपक्वता / भावनात्मक विवेक / इमोशनल इन्टेलिजेन्स
क्रोधो वैवस्वतो राजा , तृष्णा वैतरणी नदी ।
विद्या कामदुधा धेनुः , संतोषं नन्दनं वनम ॥क्रोध यमराज है , तॄष्णा (इच्छा) वैतरणी नदी के समान है । विद्या कामधेनु है और सन्तोष नन्दन वन है । )
चिन्ता चिता के पास ले जाती है ।
आत्महत्या , एक अस्थायी समस्या का स्थायी समाधान है ।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।
हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये , लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये ।
— मार्टिन लुथर किंग
अगर आपने को धनवान अनुभव करना चाहते है तो वे सब चीजें गिन डालो जो तुम्हारे पास हैं और जिनको पैसे से नहीं खरीदा जा सकता ।
हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है.
सम्पूर्णता (परफ़ेक्शन) के नाम पर घबराइए नहीं | आप उसे कभी भी नहीं पा सकते |
-– सल्वाडोर डाली
सम्पूर्णता की आकांक्षा एक पागल्पन है ।
जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है |
-– सुकरात
जब क्रोध में हों तो दस बार सोच कर बोलिए , ज्यादा क्रोध में हों तो हजार बार सोचकर.
-– जेफरसन
यदि आप जानना चाहते हैं कि ईश्वर रुपए-पैसे के बारे में क्या सोचता होगा, तो बस आप ऐसे लोगों को देखें, जिन्हें ईश्वर ने खूब दिया है.
-– डोरोथी पार्कर
जो भी प्रतिभा आपके पास है उसका इस्तेमाल करें. जंगल में नीरवता होती यदि सबसे अच्छा गीत सुनाने वाली चिड़िया को ही चहचहाने की अनुमति होती.
-– हेनरी वान डायक
जन्म के बाद मृत्यु, उत्थान के बाद पतन, संयोग के बाद वियोग, संचय के बाद क्षय निश्चित है. ज्ञानी इन बातों का ज्ञान कर हर्ष और शोक के वशीभूत नहीं होते |
– महाभारत
क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त.
ज्ञानी पुरुषों का क्रोध भीतर ही, शांति से निवास करता है, बाहर नहीं |
– खलील जिब्रान
क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है |
-– महात्मा गांधी
आक्रामकता सिर्फ एक मुखौटा है जिसके पीछे मनुष्य अपनी कमजोरियों को, अपने से और संसार से छिपाकर चलता है। असली और स्थाई शक्ति सहनशीलता में है। त्वरित और कठोर प्रतिक्रिया सिर्फ कमजोर लोग करते हैं और इसमें वे अपनी मनुष्यता को खो देते हैं।
-फ्रांत्स काफ्का
गोधन, गजधन, बाजिधन और रतनधन खान।
जब आवै सन्तोष धन सब धन धूरि समान।।
—-सन्त कबीर
संतोषं परमं सुखम् ।
( सन्तोष सबसे बडा सुख है )
यदि आवश्यकता आविष्कार की जननी ( माता ) है , तो असन्तोष विकास का जनक ( पिता ) है ।
रन बन ब्याधि बिपत्ति में , रहिमन मरे न रोय ।
जो रक्षक जननी-जठर , सो हरि गये कि सोय ॥
सुख दुख इस संसार में , सब काहू को होय ।
ज्ञानी काटै ज्ञान से , मूरख काटै रोय ॥
— कबीरदास
क्रोध ऐसी आंधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है ।
–अज्ञात
यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाये तो वह खतरनाक भी हो सकती है।
— इंदिरा गांधी
क्रोध , एक कमजोर आदमी द्वारा शक्ति की नकल है ।
हे भगवान ! मुझे धैर्य दो , और ये काम अभी करो ।


हँसी / खुशी / प्रसन्नता / हर्ष / विषाद / शोक / सुख / दुख
यदि बुद्धिमान हो , तो हँसो ।
विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है ।
— मान्तेन
प्रकृति ने आपके भीतरी अंगों के व्यायाम के लिये और आपको आनन्द प्रदान करने के लिये हँसी बनायी है ।
जब मैं स्वयं पर हँसता हूँ तो मेरे मन का बोझ हल्का हो जाता है |
-– टैगोर
न कल की न काल की फ़िकर करो, सदा हर्षित मुख रहो.
सुखं हि दु:खान्यनुभूय शोभते घनान्धकारेमिवदीपदर्शनम्।
सुखातयोयाति नरोदरिद्रताम् धृत: शरीरेण मृत: स: जीवति।।
—-शूद्रक (मृच्छकटिक नाटक)
(सुख की शोभा दुःख के अनुभव के बाद होती है जैसे घने अंधकार में दीपक की। जो मनुष्य सुख से दुःख में जाता है वह जीवित भी मृत के समान जीता है।)
रहिमन विपदाहुँ भली , जो थोरेहु दिन होय।
हित अनहित या जगत में , जानि परै सब कोय।।
—-रहीम
प्रसन्नता ऐसी कोई चीज नही जो तुम कल के लिये पोस्‍टपोंड कर दो, यह तो वो है जो हम अपने आज के लिये डिजाइन करते हैं .
— जिम राहं
जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं।
–सुधांशु महाराज
मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता ।
— अज्ञात


धैर्य / धीरज
धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है ।
— डिजरायली
सुख में गर्व न करें , दुःख में धैर्य न छोड़ें ।
- पं श्री राम शर्मा आचार्य
धीरे-धीरे रे मना , धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचै सौ घडा , ऋतु आये फल होय ॥
— कबीर


हास्य-व्यंग्य सुभाषित
हे दरिद्रते ! तुमको नमस्कार है । तुम्हारी कृपा से मैं सिद्ध हो गया हूँ ।
(क्योंकि) मैं तो सारे संसार को देखता हूँ लेकिन मुझे कोई नहीं देखता ॥
कमला कमलं शेते , हरः शेते हिमालये ।
क्षीराब्धौ च हरिः शेते , मन्ये मत्कुणशंकया ॥
लक्ष्मी कमल पर रहती हैं , शिव हिमालय पर रहते हैं ।
विष्णु क्षीरसागर में रहते हैं , माना जाता है कि खटमल के डर से ॥
कमला थिर न रहीम जग , यह जानत सब कोय ।
पुरुष पुरातन की बधू , क्यों न चंचला होय ॥
( कमला स्थिर नहीं है , यह सब लोग जानते हैं । बूढे आदमी ( विष्णु ) की पत्नी चंचला क्यों नहीं होगी ? )
असारे अस्मिन संसारे , सारं श्वसुर मन्दिरम् ।
क्षीराब्धौ च हरिः शेते , हरः शेते हिमालये ॥
( इस असार संसार में ससुराल ही सार वस्तु है । ( इसीलिये तो ) विष्णु क्षीरसागर में सोते हैं और शिव हिमालय पर । )
सत्य को कह देना ही मेरा मजाक का तरीका है। संसार मे यह सबसे विचित्र मजाक है।
–जार्ज बर्नाड शा
टेलिविज़न पर जिधर देखो कॉमेडी की धूम मची है . क्या वह गली मुहल्लों में भी कॉमेडी भर देगी ?
-– डिक कैवेट
मेरे घर में मेरा ही हुक्म चलता है. बस, निर्णय मेरी पत्नी लेती है |
-– वूडी एलन
प्यार में सब कुछ भुलाया जा सकता है, सिर्फ दो चीज़ को छोड़कर – ग़रीबी और दाँत का दर्द |
-– मे वेस्ट
चूंकि एक राजनीतिज्ञ कभी भी अपने कहे पर विश्वास नहीं करता, उसे आश्चर्य होता है जब दूसरे उस पर विश्वास करते हैं |
-– चार्ल्स द गाल
जालिम का नामोनिशां मिट जाता है, पर जुल्म रह जाता है.
पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है.
इस संसार में दो तरह के लोग हैं – अच्छे और बुरे. अच्छे लोग अच्छी नींद लेते हैं और जो बुरे हैं वे जागते रह कर मज़े करते रहते हैं |
-– वूडी एलन
अच्छा ही होगा यदि आप हमेशा सत्य बोलें, सिवाय इसके कि तब जब आप उच्च कोटि के झूठे हों |
-– जेरोम के जेरोम
किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा. उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा.
-– एनन
ईश्वर को धन्यवाद कि आदमी उड़ नहीं सकता. अन्यथा वह आकाश में भी कचरा फैला देता.
-– हेनरी डेविड थोरे
यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है. और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है.
-– पाल गेटी
विकल्पों की अनुपस्थिति मस्तिष्क को बड़ा राहत देती है |
-– हेनरी किसिंजर
भीख मांग कर पीने से प्यास नहीं बुझती
मुझे मनुष्यों पर पूरा भरोसा है – जहां तक उनकी बुद्धिमत्ता का प्रश्न है – कोका कोला बहुत बिकता है बनिस्वत् शैम्पेन के.
— एडले स्टीवेंसन
यदि वोटों से परिवर्तन होता, तो वे उसे कब का अवैध करार दे चुके होते.
यदि आप थोड़ी देर के लिए खुश होना चाहते हैं तो दारू पी लें. लंबे समय के लिए खुश होना चाहते हैं तो प्यार में पड़ जाएँ. और अगर हमेशा के लिए खुश रहना चाहते हैं तो बागवानी में लग जाएँ.
-– आर्थर स्मिथ
अत्यंत बुद्धिमती औरत ही अच्छा पति (बना) पाती है.
-– बालज़ाक
बिल्ली का व्यवहार तब तक ही सम्मानित रह पाता है जब तक कि कुत्ते का प्रवेश नहीं हो जाता.
ऐसा क्यों होता है कि कोई औरत शादी करके दस सालों तक अपने पति को सुधारने का प्रयास करती है और अंत में शिकायत करती है कि यह वह आदमी नहीं है जिससे उसने शादी की थी.
-– बारबरा स्ट्रीसेंड
बेचारगी महसूस करने से बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खुद को इतना व्यस्त रखो कि कभी यह सोचने का समय न मिले कि तुम खुश क्यों नही हो ?
जो अच्छा करना चाहता है द्वार खटखटाता है, जो प्रेम करता है द्वार खुला पाता है।
मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
- हरिशंकर परसाई
दो-चार निंदकों को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए दो-चार ईश्वर-भक्तों से, जो रामधुन लगा रहें हैं। निंदकों की सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसीलिए संतों ने निंदकों को ‘आंगन कुटि छवाय’ पास रखने की सलाह दी है।


धर्म
धृति क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो , दसकं धर्म लक्षणम ॥
— मनु
( धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं । )
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रूत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि , परेषाम् न समाचरेत् ॥
— महाभारत
( धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । )
धर्मो रक्षति रक्षितः ।
( धर्म रक्षा करता है ( यदि ) उसकी रक्षा की जाय । )
धर्म का उद्देश्य मानव को पथभ्रष्ट होने से बचाना है ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
कथनी करनी भिन्न जहाँ हैं , धर्म नहीं पाखण्ड वहाँ है ॥
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
उसी धर्म का अब उत्थान , जिसका सहयोगी विज्ञान ॥
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
धर्म , व्यक्ति एवं समाज , दोनों के लिये आवश्यक है।
— डा॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
धर्म वह संकल्पना है जो एक सामान्य पशुवत मानव को प्रथम इंसान और फिर भगवान बनाने का सामर्थय रखती है ।
–स्वामी विवेकांनंद
धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है ।
— डा शंकरदयाल शर्मा
धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं ।
— महाभारत
धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा ।
— आइन्स्टाइन


सत्य / सच्चाई / इमानदारी / असत्य
असतो मा सदगमय ।।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
(हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।
अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।।
मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् ।
प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥
सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये ।
प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है ॥
सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है।
- जार्ज बर्नार्ड शॉ
सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है ।
जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ ।
— वेद व्यास
सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है.
पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है।
- लिन यूतांग
झूट का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा ।
- लीमैन बीकर
नहिं असत्य सम पातकपुंजा। गिरि सम होंहिं कि कोटिक गुंजा ।।
—–गोस्वामी तुलसीदास
जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है ।
–सत्यार्थप्रकाश
साँच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ।
— बबीर


अहिंसा , हिंसा , शांति
याद रखिए कि जब कभी आप युद्धरत हों, पादरी, पुजारियों, स्त्रियों, बच्चों और निर्धन नागरिकों से आपकी कोई शत्रुता नहीं है।
सच्ची शांति का अर्थ सिर्फ तनाव की समाप्ति नहीं है, न्याय की मौजूदगी भी है।
- मार्टिन सूथर किंग जूनियर
‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती।
- महात्मा गांधी
आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है।
- वेडेल फिलिप्स
‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की।
- स्वामी विवेकानंद
कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है ।
–सुदर्शन


पाप, पुण्य, पवित्रता
जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है।
- फुलर


अतिथि
मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं ।
— बेंजामिन फ्रैंकलिन
अतिथि देवो भव ।
( अतिथि को देवता समझो । )
सच्ची मित्रता का नियम है कि जाने वाले मेहमान को जल्दी बिदा करो और आने वाले का स्वागत करो ।


संस्कृति
आंशिक संस्कृति श्रृंगार की ओर दौडती है , अपरिमित संस्कृति सरलता की ओर ।
— बोबी
संस्कृति उस दृष्टिकोण को कहते है जिससे कोई समुदाय विशेष जीवन की समस्याओं पर दृष्टि निक्षेप करता है ।
— डा. सम्पूर्णानन्द


गुण / सदगुण / अवगुण
सौरज धीरज तेहि रथ चाका , सत्य शील डृढ ध्वजा पताका ।
बल बिबेक दम परहित घोरे , क्षमा कृपा समता रिजु जोरे ॥
— तुलसीदास
आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है।
- आर्यान्योक्तिशतक
आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता।
- भगवान महावीर
कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे।
- पंडितराज जगन्नाथ
कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए।
- दर्पदलनम् १।२९
गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है।
- वासवदत्ता
घमंड करना जाहिलों का काम है।
- शेख सादी
तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता।
- ओशो
मैं कोयल हूं और आप कौआ हैं-हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं।
- साहित्यदर्पण
यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है |
-– शेख़ सादी
बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं.
नम्रता सारे गुणों का दृढ़ स्तम्भ है.
दूसरों का जो आचरण तुम्हें पसंद नहीं , वैसा आचरण दूसरों के प्रति न करो.
जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है।
— दीनानाथ दिनेश
जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है |
– कबीर
गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है |
– शेक्सपीयर
कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं।
- मृच्छकटिक
सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)।
- हितोपदेश
पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है ।
–गौतम बुद्ध


संयम / त्याग / सन्यास / वैराग्य
संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास ।
— काका कालेलकर
ताती पाँव पसारियो जेती चादर होय.
भोग और त्याग की शिक्षा बाज़ से लेनी चाहिए। बाज़ पक्षी से जब कोई उसके हक का मांस छीन लेता है तो मरणांतक दुख का अनुभव करता है किंतु जब वह अपनी इच्छा से ही अन्य पक्षियों के लिए अपने हिस्से का मांस, जैसाकि उसका स्वभाव होता है, त्याग देता है तो वह पर सुख का अनुभव करता है। यानि सारा खेल इच्छा , आसक्ति अथवा अपने मन का है।
- सांख्य दर्शन
भोगविलास ही जिनके जीवन का प्रयोजन
आलसी, असंयत करें अत्यधिक भोजन।
मार करता है इन निर्बलों की तवाही
करे कृश वृक्ष को ज्यों पवन धराशाई।।
—-गौतम बुद्ध (धम्मपद ७)
संयम और श्रम मानव के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं । श्रम से भूख तेज होती है और संयम अतिभोग को रोकता है ।
— रूसो
नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये ।
— रामकृष्ण परमहंस
महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं ।
— स्वामी विवेकानन्द


परोपकार / कृतज्ञता / आभार / प्रत्युपकार
परहित सरसि धरम नहि भाई ।
— गो. तुलसीदास
अष्टादस पुराणेषु , व्यासस्य वचनं द्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय , पापाय परपीडनम् ॥
अट्ठारह पुराणों में व्यास जी ने केवल दो बात कही है ; दूसरे का उपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरे को पीडा देने से पाप ।
पिबन्ति नद्यः स्वमेय नोदकं , स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः ।
धाराधरो वर्षति नात्महेतवे , परोपकाराय सतां विभूतयः ।।
——-अज्ञात
(नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है ।)
जिसने कुछ एसहाँ किया , एक बोझ हम पर रख दिया ।
सर से तिनका क्या उतारा , सर पर छप्पर रख दिया ॥
— चकबस्त
समाज के हित में अपना हित है ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए।
- महाभारत
नेकी कर और दरिया में डाल।
—-किस्सा हातिमताई(?)


प्रेम / प्यार / घॄणा
उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है।
- तिरुवल्लुवर
जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है।
- उत्तररामचरित
पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है।
- लार्ड बायरन
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चिटकाय।
तोड़े से फिर ना जुड़ै , जुड़े गाँठ पड़ि जाय।।
—-रहीम
पोथी पढि पढि जग मुआ , पंडित भया न कोय ।
ढाई अक्षर प्रेम का पढे , सो पंडित होय ॥
क्षमा / बदला
क्षमा बडन को चाहिये , छोटन को उतपात ।
का शम्भु को घट गयो , जो भृगु मारी लात ॥
— रहीम
सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है.
— रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है ।
क्षमा शोभती उस भुजंग को , जिसके पास गरल हो ।
— रामधारी सिंह दिनकर
सदाचार
सदाचार , शिष्टाचार से अधिक महत्वपूर्ण है ।


लज्जा / शर्म / हया
यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है ।
— सेंट ग्रेगरी
धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणेषु च ।
आहारे व्यवहारे च , त्यक्तलज्जः सुखी भवेत ॥
( धन-धान्य के लेन-देन में , विद्या के उपार्जन में , भोजन करने में और व्यवहार मे लज्जा-सम्कोच न करने वाला सुखी रहता है । )


जीवन-दर्शन
येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः , मनुष्यरूपे मृगाश्चरन्ति ॥
जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) ।
— भर्तृहरि
मनुष्य कुछ और नहीं , भटका हुआ देवता है ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
हर दिन नया जन्म समझें , उसका सदुपयोग करें ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
मानव तभी तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है।
— रवीन्द्र नाथ टैगोर
आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , अंधकारमय बना लेते हैं।
— रवीन्द्र नाथ टैगोर
क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) |
-– चार्ली चेपलिन
आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है |
-– मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए |
-– जेकब एम ब्रॉदे
जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है |
-– रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है , तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत |
-– हेनरी एडम्स
दृढ़ निश्चय ही विजय है
जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है. जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है. और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है.
-– जे पी डोनलेवी
दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है.
प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं.
हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं.
- - शेक्सपीयर
दूब की तरह छोटे बनकर रहो. जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है |
– गुरु नानक देव
ठोकर लगती है और दर्द होता है तभी मनुष्य सीख पाता है |
-– महात्मा गांधी
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अज्ञान है |
-– चाणक्य
जीवन एक रहस्य है, जिसे जिया न जा सकता है, जी कर जाना भी जा सकता है लेकिन गणित के प्रश्नों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता। वह सवाल नहीं - एक चुनौती है, एक अभियान है।
- ओशो
मेरी समझ में मनुष्य का व्यक्तिगत अस्तित्व एक नदी की तरह का होना चाहिए। नदी प्रारंभ में बहुत पतली होती है। पत्थरों, चट्टानों, झरनों को पार करके मैदान में आती है, एक क्रम से उसका विस्तार होता है, फिर भी बड़ी मन्थर गति से बहती है और बिना क्रम भंग किये अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है। समुद्र में अपने अस्तित्व को समाप्त करते समय वह किसी भी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं करती जो वृद्ध परुष जीवन को इस रूप में देखता है, मृत्यु के भय से मुक्त रहता है।
- बर्ट्रेंड रसेल
हर साल मेरे लिये महत्वपूर्ण है। आज भी मुझ में पूरा जोश है। मुझे महसूस होता है कि अब भी मैं २५ वर्ष की हूं। मेरे विचार आज भी एक युवा की तरह हैं। मैं आज भी चीज़ों को जानने के प्रति मेरी उत्सुक्ता बनी रहती है। इसलिये मैं यही कहूंगी कि जवां महसूस करना अच्छा लगता है।
(लता मंगेशकर, अपने ७६वें जन्म दिवस पर) काव्यादर्श
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे लम्ब खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागैं अति दूर।।
——रहीम
कबिरा यह तन खेत है, मन, बच, करम किसान।
पाप, पुन्य दुइ बीज हैं, जोतैं, बवैं सुजान।।
—-सन्त कबीर
विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढ़ता और बुद्धि भ्रष्टता उत्पन्न होती है। बुद्धि के भ्रष्ट होने से स्मरण-शक्ति विलुप्त हो जाती है, यानी ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है। और जब बुद्धि तथा स्मृति का विनाश होता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है।
–गीता (अध्याय 2/62, 63)
विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है ।
–अज्ञात
मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता |
–चाणक्य
आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता ।
–पं रामप्रताप त्रिपाठी
कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं ।
–लोकमान्य तिलक
प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं ।
— अज्ञात
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये |
— वेदव्यास
जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं ।
–गौतम बुद्ध
वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को ।
–महादेवी वर्मा
जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय |
— सम्पूर्णानंद
बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये ।
— यशपाल
कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है ।
— सावरकर


नीति / लोकनीति / नय / व्यवहार कौशल
कौन हमदर्द किसका है जहां में अकबर ।
इक उभरता है यहाँ एक के मिट जाने से ॥
— अकबर इलाहाबादी
हथौड़ा कांच को तो तोड़ देता है, परंतु लोहे को रूप देता है.
तलवारों तथा बंदूकों की आँखें नहीं होती हैं.
मुट्ठियां बाँध कर आप किसी से हाथ नहीं मिला सकते |
-– इंदिरा गांधी
कांटों को मुरझाने का डर नहीं सताता.
रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई काह करै तरवारि।।
—–रहीम
कह रहीम सम्पत्ति सगे , मिलत बहुत बहु रीति ।
बिपति-कसौटी जे कसै , सोई साँचे मीत ॥
कह रहीम कैसे निभै , बेर केर को संग ।
वे दोलत रस आपने , उनके फाटत अंग ॥
बसि कुसंग चाहत कुशल , यह रहीम जिय सोस ।
महिमा घटी समुद्र की , रावन बस्या परोस ॥
खैर खून खाँसी खुशी , बैर प्रीति मद पान ।
रहिमन दाबे ना दबे , जानत सकल जहान ॥
बिगरी बात बने नहीं , लाख करो किन कोय ।
रहिमन फाटै दूध को , मथे न माखन होय ॥
केवल वीरता से नहीं , नीतियुक्त वीरता से जय होती है । अन्य वस्तु के साथ मिलाकर विष खाने से लाभ होता है , लेकिन अकेले खाने से मरण ।
बलीयसा समाक्रान्तो वैंतसीं वृतिमाचरेत ।
— पंचतन्त्र
( बलवान से आक्रान्त होने पर मनुष्य को बेंत की रीति-नीति का अनुपालन करना चाहिये, अर्थात नम्र हो जाना चाहिये । )
कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं ।
— प्रेमचंद
आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता ।
–चाणक्य
जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता ।
— माघ्र
जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं ।
–रवीन्द्र
जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो , वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये ।
— कुमार सम्भव


लक्ष्य / उद्देश्य / ध्येय
यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें |
महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है ।
— इमन्स
जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डांवांडोल स्थिति में रहना ।
— सुभाषचंद्र बोस!
जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो ।
–इंदिरा गांधी
विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है ।


इच्छा / कामना / मनोरथ / महत्वाकाँक्षा / चाह / सपने देखना
मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है |
– वेदव्यास
इच्छा ही सब दुःखों का मूल है |
-– बुद्ध
भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है?
- गाथासप्तशती
स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके ।
–आचार्य तुलसी
माया मरी न मन मरा , मर मर गये शरीर ।
आशा तृष्ना ना मरी , कह गये दास कबीर ॥
— कबीर


सन्तान / पुत्र
पूत सपूत त का धन संचय , पूत कपूत त का धन संचय ।
अजात्मृतमूर्खेभ्यो मृताजातौ सुतौ वरम् ।
यतः तौ स्वल्प दुखाय, जावज्जीवं जडो दहेत् ॥
— पंचतन्त्र
( अजात् ( जो पैदा ही नहीं हुआ ) , मृत और मूर्ख - इन तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं , क्योंकि अजात और मृत पुत्र अल्प दुख ही देते हैं । किन्तु मूर्ख पुत्र जब तक जीवन है तब तक जलाता रहता है । )
माता शत्रुः पिता बैरी , येन बालो न पाठितः ।
सभामध्ये न शोभते , हंसमध्ये बको यथा ॥
जिसने बालक को नहीं पढाया वह माता शत्रु है और पिता बैरी है ।
(क्योंकि) सभा में वह (बालक) ऐसे ही शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के बीच बगुला ।
दो बच्चों से खिलता उपवन ।
हँसते-हँसते कटता जीवन ।।
धरती पर है स्वर्ग कहां – छोटा है परिवार जहाँ.
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है |
–कहावत


पालन-पोषण / पैरेन्टिग
किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो ।
— बिनोवा भावे
बुद्धिमान पिता वह है जो अपने बच्चों को जाने.


स्वाधीनता / स्वतन्त्रता / पराधीनता
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं ।
— गोस्वामी तुलसीदास
आर्थिक स्वतन्त्रता से ही वास्तविक स्वतन्त्रता आती है ।
आजादी मतलब जिम्मेदारी। तभी लोग उससे घबराते हैं।
— जार्ज बर्नाड शॉ
स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
–विनोबा
जंजीरें, जंजीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं ।
–स्वामी रामतीर्थ
नरक क्या है ? पराधीनता ।
— आदि शंकराचार्य


आडम्बर, ढकोसला, ढोंग , पाखण्ड , वास्तविकता / हाइपोक्रिसी
माला तो कर में फिरै , जीभ फिरै मुख माँहि ।
मनवा तो चहु दिश फिरै , ये तो सुमिरन नाहिं ॥
— कबीर
दिन में रोजा करत है , रात हनत है गाय ।
— कबीर
चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन
हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
- विनोबा
भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।
- स्वामी रामदेव
पत्रकारिता में पच्चीस साल के अनुभव के बाद मैं एक बात निश्चित रूप से जानती हूं कि सत्य को दफ़नाया जा सकता है, उसकी हत्या नहीं की जा सकती। सत्य कब्र से भी उठकर सामने आ जाता है और उनके पीछे भूत की तरह लग जाता है जिन्होंने उसे दफ़न करने की साज़िश की थी।
- अनीता प्रताप
बकरियों की लड़ाई, मुनि के श्राद्ध, प्रातःकाल की घनघटा तथा पति-पत्नी के बीच कलह में प्रदर्शन अधिक और वास्तविकता कम होती है।
- नीतिशास्त्र
पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।।
—- गोस्वामी तुलसीदास
ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो.
जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते |
-– नवाजो
जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए |
-– कनफ़्यूशियस
सोचना, कहना व करना सदा समान हो.
नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है ।
–संत तिस्र्वल्लुवर


पुस्तकें
सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है |
— डबल्यू एच ऑदेन
पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है.
किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है |
-– रे ब्रेडबरी
पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है.
संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती।
- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है ।
— एमर्शन
किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं ।
–अज्ञात


स्वाध्याय / अध्ययन
स्वाध्यायात मा प्रमद ।
( स्वाध्याय से प्रमाद ( आलस ) मत करो । )
अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है.
मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की ।
— जोसेफ एडिशन
पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं ; न ही कोई खुशी , उतनी स्थायी ।
— जोसेफ एडिशन


गुरू
आत्मनो गुरुः आत्मैव पुरुषस्य विशेषतः |
यत प्रत्यक्षानुमानाभ्याम श्रेयसवनुबिन्दते ||
( आप ही स्वयं अपने गुरू हैं | क्योंकि प्रत्यक्ष और अनुमान के द्वारा पुरुष जान लेता है कि अधिक उपयुक्त क्या है | )


उपयोग, दुर्उपयोग
जड़, तना, बहुतेरे पत्ते और फल सब कुछ मेरे पास है। फिर भी मात्र छाया से रहित होने के कारण संसार मुझ खजूर की निंदा करता रहता है।
- आर्यान्योक्तिशतक
अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते।
- जानसन
मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है।
- अरुंधती राय
संसार में दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता को चिता में प्रवेश करने पर ही छोड़ता है।
सूक्तिमुक्तावली-७०


भाग्य / किश्‍मत
आपका आज का पुरुषार्थ आपका कल का भाग्य है |
-– पालशिरू
दुनिया में कोई भी व्यक्ति वस्तुतः भाग्यवादी नहीं है, क्योंकि मैंने एक भी ऐसा आदमी नहीं देखा, जो अपने घर में आग लगने की बात जान कर भी निश्चित बैठा रहे।
- जे.बी. एस. हॉल्डेन
कादर मन कँह एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा।।
——गोस्वामी तुलसीदास
हर इक बदनसीबी आने वाले कल की खुशनसीबी का बीज लेकर आती है .
— ओग मेनडिनो
भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बांध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है ।
-अज्ञात


चरित्र
व्यक्तिगत चरित्र समाज की सबसे बडी आशा है ।
— चैनिंग
प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है. एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है |
– अलफ़ॉसो कार
त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । )
कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है।
- नीतिवाक्यामृत-३।१२
जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती ।
— विनोबा
मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है ।
— स्वामी विवेकाननद


ईश्वर
ईश प्राप्ति (शांति) के लिए अंतःकरण शुद्ध होना चाहिए |
– रविदास
ईश्वर के हाथ देने के लिए खुले हैं. लेने के लिए तुम्हें प्रयत्न करना होगा |
– गुरु नानक देव
रहिमन बहु भेषज करत , ब्याधि न छाडत साथ ।
खग मृग बसत अरोग बन , हरि अनाथ के नाथ ॥
अजगर करैं न चाकरी, पंछी करैं न काम।
दास मलूका कहि गये सब के दाता राम।।
—– सन्त मलूकदास


मीठी बोली / मधुर वचन / कर्कश वाणी
तुलसी मीठे बचन तें , सुख उपजत चहुँ ओर ।
वशीकरण इक मंत्र है , परिहहुँ बचन कठोर ॥
ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल लगे , आपहुँ शीतल होय ॥
— कबीरदास
मधुर वचन है औषधि , कटुक वचन है तीर ।
श्रवण मार्ग ह्वै संचरै , शाले सकल शरीर ॥
— कबीरदास
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं , वचने का दरिद्रता ॥
( प्रिय वाणी बोलने से सभी जन्तु खुश हो जाते है । इसलिये मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये , वाणी में क्या दरिद्रता ? )
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं |
-– तिरूवल्लुवर
नरम शब्दों से सख्त दिलों को जीता जा सकता है |
– सुकरात
अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं |
-– बुद्ध
खीरा सिर ते काटिये , मलियत लौन लगाय ।
रहिमन करुवे मुखन को , चहिये यही सजाय ॥
कडी बात भी हंसकर कही जाय तो मीथी हो जाती है ।
— प्रेमचन्द


उदारता
अयं निजः परोवेति, गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
यह् अपना है और यह पराया है ऐसी गणना छोटे दिल वाले लोग करते हैं ।
उदार हृदय वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है ।
सत्यमेव जयते । ( सत्य ही विजयी होता है )
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुखभागभवेत् ॥
सभी सुखी हों , सभी निरोग हों ।
सबका कल्याण हो , कोई दुख का भागी न हो ॥
यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं
– हैरी एस. ट्रूमेन
श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है |
-– काउन्ट रदरफ़र्ड
उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं ।
-चीनी कहावत
कबिरा आप ठगाइये , और न ठगिये कोय ।
आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुख होय ॥
— कबीर


स्वास्थ्य
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ ( पिलर ) हैं ।
— महर्षि चरक
मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय ।
— श्रीराम शर्मा , आचार्य
जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।
- महात्मा गांधी
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ ( पिलर ) हैं ।
— महर्षि चरक
को रुक् , को रुक् , को रुक् ?
हितभुक् , मितभुक् , ऋतभुक् ।
( कौन स्वस्थ है , कौन स्वस्थ है , कौन स्वस्थ है ?
हितकर भोजन करने वाला , कम खाने वाला , इमानदारी का अन्न खाने वाला )
स्वास्थ्य के संबंध में , पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है।
— मार्क ट्वेन
बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है।
- अष्टावक्र
नीम हकीम खतरे जान ।
खतरे मुल्ला दे ईमान।।
—-अज्ञात


अन्य / विविध / अवर्गीकृत
योगः चित्त्वृत्तिनिरोधः ।
वाक्यं रसात्मकं काव्यम ।
अलंकरोति इति अलंकारः ।
सर्वनाश समुत्पन्ने अर्धो त्यजति पण्डितः ।
( जहाँ पूरा जा रहा हो वहाँ पण्डित आधा छोड देता है )
बिनु संतोष न काम नसाहीं , काम अक्षत सुख सपनेहु नाही ।
एकै साधे सब सधे , सब साधे सब जाय ।
रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय ॥
उदाहरण वह पाठ है जिसे हर कोई पढ सकता है ।
भोगाः न भुक्ता वयमेव भुक्ता: , तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा: ।
( भोग नहीं भोगे गये, हम ही भोगे गये । इच्छा बुढी नहीं हुई , हम ही बूढे हो गये । )
— भर्तृहरि
चेहरों में सबसे भद्दा चेहरा मनुष्य काही है ।
— लैब्रेटर
हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।
— बेन्जामिन
हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।
— अनोन
कीरति भनिति भूति भलि सोई , सुरसरि सम सबकँह हित होई ॥
— तुलसीदास
स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं ; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे ।
— अलबर्ट हबर्ड
अपने उसूलों के लिये , मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ , लेकिन किसी को मारने के लिये , बिल्कुल नहीं।
— महात्मा गाँधी
विजयी व्यक्ति स्वभाव से , बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।
— प्रेमचंद
अतीत चाहे जैसा हो , उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं ।
— प्रेमचंद
मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।
— महात्मा गाँधी
परमार्थ : उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता ।
बुराई के अवसर दिन में सौ बार आते हैं तो भलाई के साल में एकाध बार.
एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है.
अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो |
-– थियोडॉर रूज़वेल्ट
आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता |
-– जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया.
काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है.
वहाँ मत देखो जहाँ आप गिरे. वहाँ देखो जहाँ से आप फिसले.
हाथी कभी भी अपने दाँत को ढोते हुए नहीं थकता.
तालाब शांत है इसका अर्थ यह नहीं कि इसमें मगरमच्छ नहीं हैं
-– माले
सूर्य की तरफ मुँह करो और तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे होगी |
-– माओरी
खेल के अंत में राजा और पिद्दा एक ही बक्से में रखे जाते हैं |
-– इतालवी सूक्ति
यदि आप गर्मी सहन नहीं कर सकते तो रसोई के बाहर निकल जाईये ।
-– हैरी एस ट्रुमेन
जब मैं किसी नारी के सामने खड़ा होता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर के सामने खड़ा हूँ.
— एलेक्जेंडर स्मिथ
अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी खरीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली.
कभी भी सफाई नहीं दें. आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों को विश्वास ही नहीं होगा |
-– अलबर्ट हब्बार्ड
कविता में कोई पैसा नहीं है. परंतु पैसा में भी तो कविता नहीं है.
-– रॉबर्ट ग्रेव्स
बातचीत का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह होता है कि ध्यानपूर्वक यह सुना जाए कि कहा क्या जा रहा है.
तुम अगर सूर्य के जीवन से चले जाने पर चिल्लाओगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देखेंगी ?
— रविंद्रनाथ टैगोर
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
—–महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
( जननी ( माता ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है – विवेकानन्द
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है.
कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय।
उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय।।
—-सन्त कबीर
ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश।
—-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी)
तुलसी इस संसार मेम , सबसे मिलिये धाय ।
ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय ॥
अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति करने से सर्वत्र बचना चाहिये । )
कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। -गुरू नानक
प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। ईसा मसीह
जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं ।
यदि सज्जनो के मार्ग पर पुरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले । सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नहीम है । प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है ।
— लांगफेलो
दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत ।
इंसान जरा सैर करे , घर से निकल कर ॥
— दाग
विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते ।
— आगस्टाइन
दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा
डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -अज्ञात
जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। -अज्ञात
अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का ।
— कहावत
ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा ।
–विनोबा
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है ।
–रवींद्रनाथ ठाकुर
आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी
पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।
–अज्ञात
विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है । - अज्ञात
गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। - सादी
जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । - रामकृष्ण परमहंस
मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात
जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी
देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात
चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र
जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर
चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा
अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र
लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है । -मुक्ता
अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध
मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है । -गौतम बुद्ध
स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! -लोकमान्य तिलक
त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ
दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। -प्रेमचंद
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद
अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं -महर्षि अरविन्द
द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा
सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना । - डा शंकर दयाल शर्मा
सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद
सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । - सरदार पटेल
तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है।
- रत्वान रोमेन खिमेनेस
जो व्यक्ति अनेक लोगों पर दोष लगाता है , वह स्वयं को दोषी सिद्ध करता है ।
तूफान जितना ही बडा होगा , उतना ही जल्दी खत्म भी हो जायेगा ।
लडखडाने के फलस्वरूप आप गिरने से बच जाते हैं ।
रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ जाता है )
गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं )
निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । )
अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरं करना चाहिये । )
मधुरेण समापयेत्‌.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
सत्यं शिवं सुन्दरम्‌.
( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है ।

मैथिलीशरण गुप्त

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